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Thursday, February 21, 2008

भाई मैं मुंबई क्यों छोड़ूं ?


भाई चाहे राज ठाकरे कहें या उनके ताऊजी बाला साहेब मैं तो मुंबई से हटने के मूड में एकदम नहीं हूँ..... मैं ठहरा आख़िर बिहारी ...मैं ही नहीं मेरे सभी दोस्त, मेरा परिवार, सभी सदस्य ऐसा ही सोचते हैं...लेकिन हम सब और खास कर मैं किसी राज ठाकरे या उसके गुंड़ों से मार ही खाने के लिए तैयार हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरे पास कोई फौज नहीं है न ही कोई समर्थकों का गिरोह ही। मैं तो अभी तक यहाँ का मतदाता भी नहीं हुआ हूँ...बस रह रहा हूँ और आगे भी ऐसे ही रहने का मन है.....जो लोग मुंबई को अपना कहने का दंभ दिखा रहे हों...वो सुन लें... कभी भी अगर बीमार न रहा होऊँ तो 15 से 17 घंटे तक काम करता हूँ...इतनी ही मेहनत हर उत्तर भारतीय यहाँ करता है...वे या मैं किसी भी राज या नाराज ठाकरे या उनके मनसे के किसी गुंडों से कम महाराष्ट्र या मुंबई को नहीं चाहते हैं... अगर उनके पास कोई राज्य भक्ति को मापने का पैमाना हो तो वे नाप लें अगर उनसे कम राज्य भक्त निकला तो खुशी से वापस बिहार चला जाऊँगा....लेकिन अगर मेरे मन में कोई खोट नहीं है और मैं एक अच्छे शहरी की तरह मुंबई को अपना मानता हूँ तो मैं अपनी हिफाजत के लिए गोलबंद होने की आजादी रखता हूँ....अगर हमें खतरा लगा तो बाकी भी खतरे में ही रहेंगे...क्योंकि तोड़- फोड़ के लिए बहुत कम हिम्मत की जरूरत होती है....लूट और आगजनी से बड़ी कायरता कुछ नहीं हो सकती....रास्ते में जा रहे या किसी चौराहे पर किसी टैक्सी वाले को उतार कर पीटना और उसके रोजीके साधन को तोड़ देना तो और भी आसान है....मैं यह सब कायरता भरा कृत्य करने के लिए गोलबंद नहीं होना चाहूँगा बल्कि मैं ऐसे लोग का मुँह तोड़ने के लिए उठने की बात करूँगा जो हमें यहाँ से हटाने की सोच रहे हैं....मेरा दृढ़ मत है कि उत्तर भारत के ऐसे लोगों को आज नहीं तो कल एक साथ आना होगा .....उत्तर भारतीयों को एक उत्तर भारतीयों को सुरक्षा देने वाली मनसे के गुंड़ो को मुहतोड़ उत्तर देने वाली उत्तर सेना बनाने के वारे में सोचना ही पड़ेगा....जो लोग आज भी मुंबई में अपनी जातियों का संघ बना कर जी रहे हैं....मैं उन तमाम जातियों को अलग-अलग नहीं गिनाना चाहूँगा....उत्तर भारत से बहुत दूर आ कर भी आज भी बड़े संकीर्ण तरीके से अपने में ही सिमटे हुए लोगों से मैं कहना चाहूँगा कि ...आज जरूरत है सारे उत्तर भारतीयों को एक साथ आने की जिन्हें यहाँ भैया कह कर खदेड़ा जा रहा है....उनमें अमिताभ बच्चन भी हैं जो कि अभिनय करते हैं...और शत्रुघन सिन्हा भी, उनमें हसन कमाल भी हैं...जो कि लिखते हैं...और निरहू यादव भी, जो कि सब कुछ करते हैं.........उनमें राम संतलाल पाल भी हैं जो किताब बेंचते हैं और सुंदर लाल भी जो कि कारपेंटर हैं...जिनका दावा है कि हम काम न करें तो मुंबई के आधे घर बिना फर्नीचर के रह जाएँ......तो आज नही तो कल होगा.....संसाधनों के लिए दंगल होगा....और इसके लिए तैयार रहने को मैं कायरता नहीं मानता। ऐसा मैं अकेला ही नहीं सोच रहा ऐसे लाखों लोग हैं जो अपनी मुंबई को छोड़ने के बदले लड़ कर मरना बेहतर समझेंगे। आप भी तैयार रहिया ...

Saturday, February 9, 2008

राज का गुंडाराज,किसकी मुम्बई!


मुंबई में जो हो रहा है, उस पर कौन गर्व कर सकता है?

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ मोर्चा खोलकर और क्षेत्रीय संकीर्णता के जिन्न को बोतल से बाहर निकाल कर एक ऐसे विवाद को जन्म दिया है जो हमारे देश के संघीय ढांचे पर कुठाराघात करता है।
बिहारियों द्वारा छठ पर्व मनाए जाने को नाटक करार देने और बिग बी अमिताभ बच्चन के उत्तरप्रदेश प्रेम पर ताने कसने के राज के कृत्य की जितनी भी निंदा की जाए कम है। क्षेत्रीय संकीर्णता के इस विषधर को समय रहते कुचल डालने में ही देश का भला है अन्यथा इसका जहर फैलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
राज ठाकरे के ऐसा करने का मकसद मराठी भाषी वोट बैंक को अपनी पार्टी के साथ जोड़ना है, पर मराठी समाज उनके इस संकीर्ण नजरिये के समर्थन में उठ खड़ा हो इसकी संभावना नही है। राज के चाचा बालासाहेब दशकों से संकीर्ण महाराष्ट्रवाद की राजनीति करते रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता में उनकी पार्टी तभी भागीदार बन पाई जब उसने भाजपा सरीखी राष्ट्रीय पार्टी से हाथ मिलाया। वही शिवसेना को भी अपना रुख बदलना पड़ा..बालासाहेब की शिवसेना से अलग होकर राज ने अपनी जो नई राजनीतिक दुकान खोली है वह तमाम जतन करके भी न तो कोई साख बना पाई है और न जनाधार ही। शायद इसी से हताश हो कर राज ने उत्तर भारतीयों पर हमला बोला है जो भोथरा होने के साथ ही समाज को बांटने वाला भी है।
सुरक्षा संबंधी कारणों को छोड़ दें तो देश के नागरिक देश के किसी भी हिस्से में आने-जाने, रोजी-रोटी कमाने और अपनी रीतियों-परंपराओं का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह उनके संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हिस्सा है। मुंबई में बिहारियों द्वारा छठ पूजा करने को नाटक बताकर राज ने वहां रहने वाले बिहारियों के मूल अधिकारों को चुनौती दी है।
अमिताभ बच्चन के उत्तरप्रदेश प्रेम पर उनकी तानाकशी भी इसी दायरे में आती है। बिहारियों को मुंबई में छठ पूजा करने का उतना ही हक है जितना कि महाराष्ट्रियनों को देशभर में गणोशोत्सव मनाने का।

राज ठाकरे अगर वास्तव में मुंबई के विकास के प्रति उत्सुक हैं तो उन्हें अपना ध्यान छठ पूजा से हटाकर प्रशासन की खामियों पर केंद्रित करना होगा। पटना या गोरखपुर से आने वाली रेलगाड़ियों को तो नहीं रोका जा सकता है। अगर रोका जा सकता है तो वह है राजनीतिक भ्रष्टाचार का अजगर जिसने मुंबई के शरीर को तो चपेट में ले ही लिया है, अब उसकी आत्मा को भी डसने की फिराक में है। मगर राज तो गुंडागर्दी करके अपनी राजनितिक रोटी सकना चाहते है। जिस पर रोक लगना चाहेया