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Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष २००९ मंगलमय हो


नूतन वर्ष आप सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियां लेकर आए।


नव वर्ष २००९ मंगलमय हो


शुभ २००९

Tuesday, December 16, 2008

मुसलमान बनों वरना इज्जत तार-तार कर देंगे.. देश भी छोड़ो


पहले उन दरिंदों ने हमें धर्म बदलने की धमकी दी, फिर जब हमने उनकी धमकियों का विरोध किया तो मेरे पिता और भाई के सामने ही मुझे अपनी हवस का शिकार बनाया। उन मुसलिम दरिंदों ने मेरी मां को भी नहीं बख्शा..क्या हमारा हिंदू होना गुनाह है?
इन दिनों यह कहर बरप रहा है पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू परिवारों पर, जो मुंबई आतंकी हमले के बाद और तेज हो गया है। पिछले १० दिनों में हिंदू परिवारों की दर्जनों महिलाओं से दुष्कर्म कर उनके घरों को लूटा गया। उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि या तो वह मजहब बदल लें या फिर देश। हिंदू परिवार वहां से पलायन करके भारत आ रहे हैं। समझौता एक्सप्रेस से आए दो हिंदू परिवारों ने जब अपनी दुखभरी कहानी मीडिया को बताई तो मन गुस्से से भर उठा। सिंध प्रांत से भारत पहुंचे हिंदू परिवारों ने कहा कि पाक में आज वहीं दोहराया जा रहा है जो बंटवारे के दौरान हुआ था। वहां के जमींदार व पुलिस खुद यह घिनौना खेल खेलने में लगी है। अब हिंदू परिवारों का वहां रहना मुश्किल हो गया है। बहू-बेटियों से दुष्कर्म किया जा रहा है। बच्चों को अगवा करके फिरौती मांगी जा रही है। क्या भारत सरकार इस मामले की जांच करवाएंगी?

Wednesday, December 10, 2008

ये कैसा प्यार है चांद मुहम्मद


मुझे अपनी पत्‍‌नी और बच्चों में कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर वे मुझसे मिलना भी चाहेंगे तो मैं उन्हें भगा दूंगा। अनुराधा बाली यानी फिजा ही अब मेरी जिंदगी है। पहले मेरा प्यार है फिर राजनीति या कुछ और ... भाइयों, यह महान विचार है चंद्रमोहन से चांद मुहम्मद बने हरियाणा के (बर्खास्त) डिप्टी सीएम के। सच में ये प्यार में इतने अंधे हो चुके है कि अपने बच्चों से भी मिलने से इन्होंने इंकार कर दिया है। आखिर ये कौन सा प्यार है नेता जी?जिस औरत के साथ भगवान को साक्षी मानकर आपने सात फेरे लिए और जिंदगी के क्8 साल बिताए, बच्चों को जन्म दिया उससे यू ही नाता तोड़ लोगे। वाह रे प्यार।।। मात्र भ् सालों से आपकी जिंदगी में आई हरियाणा की सहायक महाधिवक्ता रही अनुराधा बाली उर्फ फिजा की नजर कहीं आपके विशाल संपत्ति पर तो नहीं है? हालांकि बकौल फिजा-चांद से उनका विवाह किसी रुतबे या जमीन जायदाद के लालच में नहीं है। हम एक दूसरे से सच्चा प्यार करते है।

Sunday, December 7, 2008

जरा याद उन्हें भी कर लो जिनकी लाश भी घर न आयी


२६ नवंबर को मुंबई छत्रपति शिवाजी विखरोली टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर आतंकियों की गोली का शिकार असम के उत्तर दिनाजपुर निवासी हसिबुर्रहमान भी हुआ। आर्थिक तंगी की वजह से उसके परिजन उनकी लाश भी मुंबई से नहीं ला सके। उन्हें मृतकों के परिजनों के लिए घोषित सरकारी मदद की जगह अबतक सिर्फ हसीबुर्रहमान की मृत्यु के प्रमाण पत्र का फैक्स मिला है। यहां तक कि सरकार ने उसकी लाश तक घर भिजवाने की व्यवस्था नहीं की। उसके परिजनों को हसीबुर्रर के अंतिम दर्शन नहीं कर पाने का मलाल है। सर्वाधिक दुखद स्थिति यह कि अबतक उनके परिजनों की सुध लेने की जहमत किसी अधिकारी ने नहीं उठायी। यहां तक कि शासन-प्रशासन के लोग उन्हें संवेदना के दो शब्द कहने भी नहीं आये। हसिबुर्रहमान मुंबई में राजमिस्त्री का काम करता था। मुंबई प्रशासन ने हसिबुर्रहमान को मुंबई के कब्रिस्तान में दफनाकर इसकी जानकारी मृत्यु प्रमाण पत्र फैक्स कर उनके घर वालों को दी। हसिबुर्रहमान के पिता फैजुद्दीन और माता जुलेखा खातून को बेटे की अकाल मौत पर दुख तो है ही, उन्हें अपने पुत्र के अंतिम दर्शन नहीं कर पाने का मलाल भी है। वह परिवार में इकलौता कमाऊ सदस्य था। उसकी मौत से परिवार पर आर्थिक संकट का पहाड़ टूट पड़ा है।

Saturday, November 29, 2008

शर्म करो पाटिल आर.आर. पाटिल


महाराष्ट्र का शिखंडी उप मुख्यमंत्री आर आर पाटिल देश के सबसे बड़े आतंकी हमले को छोटी-मोटी वारदात मानता है। इस बे-शर्म मंत्री को कौन बताए कि तुम जैसे नेता ही देश के लिए सबसे बड़े आतंकी है। शनिवार को मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इस हिजड़े नेता ने कहा कि 'बड़े शहरों में ऐसे एकाध हादसे होते रहते हैं।' आतंकी बड़े पैमाने पर तबाही मचाने आए थे, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। इस तरह का बयान देकर आर।आर। पाटिल जैसे हिजड़े नेता इस हमले में शहीद जवानों समेत उन तमाम नागरिकों का अपमान किया है, जो इस हमले में अपने प्राणों की आहुति दे गए। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि एक हिजड़ा पाटिल केंद्र में कुंडली मार कर बैठा है तो दूसरा हिजड़ा पाटिल मुंबई में। क्या अब मनमोहन सिंह को राष्ट्रीय शर्म दिखाई नहीं देता?

शत शत नमन..जाबांज शहीदों








देश पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले में हमने १६ जांबाज अधिकारियों को खोया हैं। आतंकवाद के खिलाफ करीब साठ घंटे चली इस कार्रवाई में एटीएस चीफ हेमंत करकरे के अलावा अशोक काम्टे, विजय सलास्कर, शशांक शिंदे, प्रकाश मोरे, बापूसाहेब दुरुगडे़, तुकाराम ओंबले, नाना साहेब भोंसले, अरुण चिते, जयवंत पाटिल, योगेश पाटिल, एम।सी.चौधरी और अंबादास पवार जैसे सिपाही भी वीर गति को प्राप्त हुए। इन जांबाजों के बलिदान को देश कभी भुला नहीं पाएगा।

सभी बीर शहीदों को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि

..कहां है वे हिजड़े नेता


..कहां है वे हिजड़े नेता, जिन्होंने केंद्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे के बावजूद कुछ ही समय पूर्व सिमी को निर्दोष बताया था। देश में इस समय एक भीषण आतंकी हमला हुआ है, और वे शिखंडी (नेता) इस वक्त किसी को ढाढ़स बंधाने के लिए भी आगे नहीं आए। शर्म करो अमर सिंह, लालू, पासवान, राज ठाकरे, अबू आजमी और महा बेशर्म गृहमंत्री समेत केंद्र सरकार भी। खैर जब ये बेशर्म ही हैं तो इनके बारे में क्या कहना। सरकारी लापरवाही से देश की आर्थिक राजधानी पर हुए इस बड़े आतंकी हमले में हम मुंबई के जज्बे को सलाम करते है। साथ ही देश के घटिया राजनेताओं की गंदी राजनीति की भेंट चढ़े उन तमाम लोगों, एटीएस के अधिकारियों और कमांडो जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते है, इस उम्मीद के साथ शायद उन हिजड़े राजनेताओं को अब सद्बुद्धि आ जाए जो आतंकवादियों में भी वोट बैंक तलाशते रहते है।

Friday, November 28, 2008

गोलियों की बौछार में वो अपनी प्रेमिका को निकाल लाया


आतंकवादी ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर रहे थे, बीच-बीच में ग्रेनेड की आवाज भी दिल को दहला दे रही थी, मगर इन सबके बीच एक शख्स ऐसा था, जिसे कुछ नहींसूझ रहा था। उसे सिर्फ दिखाई दे रहा था, वो चेहरा जो थी उसकी मासूम प्रेमिका। आपने फिल्मों मे हीरोइन की विलेन से हिफाजत करने के लिए लड़ते हीरो को कई बार देखा होगा। लेकिन बृहस्पतिवार को मुंबई मे एक शख्स ने सचमुच मे 'हीरो' जैसा काम करके दिखाया। आतंकियों की गोलियों की बरसात के बीच से अपनी प्रेमिका को निकाल लाया। हालांकि इस दौरान एक गोली उसकी प्रेमिका के पैर मे लग गई। आस्ट्रेलिया का रहने वाला यह युवा जोड़ा ख्ब् साल की केट एंस्टी और ख्फ् साल के डेविड काकर बुधवार को मुंबई पहुंचे थे। दोनों यहां ग्रेजुएट की डिग्री मिलने की खुशी मनाने आए थे। उन्हें क्या पता था कि उनकी खुशियों पर आतंक का ग्रहण लग जाएगा। बुधवार को होटल पहुंचने के थोड़ी देर बाद यह जोड़ा लियोपोल्ड कैफे पहुंचा। दोनों अभी अपनी सीट पर बैठे ही थे कि चार-पांच लोग आए और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। एक गोली केट के पैर मे लगी और उसकी हड्डियों को छेदती हुई बाहर निकल गई। चारों ओर से गोलियों की आवाज। चीख-पुकार और अफरा-तफरी। लेकिन दाद देनी होगी डेविड के दिमाग की। उसने पल भर की देरी किए बिना केट को गोद मे उठाया और दौड़ पड़ा। बिना यह सोचे कि अगले पल क्या होने वाला है। इस दौरान एक गोली उसके बदन को भी छूती हुई निकल गई। लेकिन डेविड रुका नही। वहां से बाहर निकल कर वह टैक्सी लेकर अस्पताल पहुंचा। वहां उसकी प्रेमिका केट के पैर मे सर्जरी की गई है। वाकई क्या जज्बा है-दोनों के प्रेम में।

Thursday, November 27, 2008

सलाम सतेंद्र दूबे...सलाम सतेंद्र दूबे


वह बहुत ही होशियार, ईमानदार और हमेशा दूसरों की फिक्र करने वाला इंसान था। एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट का प्रबंधक इंजीनियर होते हुए भी सामान्य जीवन के साथ 18-18 घंटे काम करना और धूल-धक्कड़ की परवाह किए बिना सुदूर इलाकों में पैदल ही चले जाना उसकी दिनचर्या थी। मगर उसे क्या पता था कि उसकी ईमानदारी ही उसके लिए एक दिन मौत का कारण बन जाएगी। जी, हां हम बात कर रहे है एनएचएआई के शहीद इंजीनियर सतेंद्र दूबे की, जिन्हें २७ नवंबर २००३ में मौत के घाट उतार दिया गया। उन्हें सजा मिली भ्रष्टाचार को उजागर करने की, उसे रोकने की और सिस्टम से लड़ने की। दुर्भाग्य तो इस बात का है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के ड्रीम प्रोजेक्ट और उनके कार्यालय से जुड़े इस मामले की जांच कर रही सीबीआई भी कठघरे में है। सतेंद्र दूबे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की गया यूनिट के प्रमुख थे और हत्या से लगभग म् माह पूर्व उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई को स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत की थी। हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे, मगर आज हत्या के 5 साल बाद भी नतीजा सिफर रहा। इस मामले में अब तक आधा दर्जन लोग गिरफ्तार किए गए, जिसमें प्रमुख आरोपी मुकद्दर पासवान और शिवनाथ साव ने विगत 1 फरवरी २००४ को संदिग्ध रूप से आत्महत्या कर ली, हालांकि उसके घर वालों ने सीबीआई पर उन्हें जहर देकर मारने का आरोप लगाया। वहीं २३ जून २००८ को एक और मुख्य आरोपी उदय चौधरी पुलिस हिरासत से फरार हो गया। बताया गया कि पटना सिविल कोर्ट में पेशी के दौरान वह अचानक गंगा नदी पुल से छलांग लगा कर नदी में कूद गया। बाकी आरोपी भी सबूत के अभाव में छोड़ दिए गए। इस मामले का एक और प्रमुख गवाह एक रिक्शाचालक भी पिछले 5 सालों से गायब है, जिसके बारे में सीबीआई आज तक कोई सुराग नहीं लगा पाई। यानी कुल मिला कर विगत पांच वर्षों में देश की एक महत्वपूर्ण जांच एजेंसी एक ईमानदार इंजीनियर के हत्यारों को सजा भी नहीं दिला सकी।

Thursday, November 20, 2008

मुंबई एटीएस ने साध्वी से पूछा- क्या तुम कुंवारी हो?


आतंकवादी बताकर गिरफ्तार की गई साध्वी प्रज्ञा को यातना देने में एटीएस ने तमाम हदें पार कर दी है। साध्वी से पूछे गए सवालों में इंसानियत और मर्यादाओं को तार तार करने वाले सवाल भी पूछे गए। उनसे पूछा गया कि क्या वे कुंवारी हैं ? आश्चर्य इस बात का है कि अर्ध्दनग्न नृत्य करने वाली टीवी और फिल्मी अभिनेत्रियों के आपसी झगड़ों और स्वार्थों की लड़ाई में देश का महिला आयोग बयान जारी करता है और इन अभिनेत्रियों से मिलकर उनके साथ ग्रुप फोटो खिंचवाता है, जबकि एक साध्वी जिससे अभी पूछताछ हो ही रही है उसे हर तरह से प्रताड़ित किए जाने के बावजूद महिला आयोग ने चुप्पी साध रखी है।

कश्मीर में आशिया अंदरावी नामकी महिला कट्टर इस्लामी संगठन दुख्तराने मिल्लत की अध्यक्ष हैं। उन पर अमेरिका ने आरोप लगाया था कि श्रीनगर के एक बम धमाके में उनके संगठन का हाथ था। जिसमें एक पत्रकार मारा गया था। भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने उन पर हवाला से पैसा लेकर जिहादी आतंकवादियों को देने का आरोप लगाया और पोटा के अंतर्गत जेल भी भेजा देश के खिलाफ और आतंकवादियों के समर्थन में काम करने वाली इस महिला को जेल में वे तमाम ऐसो आराम और सुविधाएं दी गईं और बाद में छोड़ भी दिया गया। दूसरी ओर साध्वी प्रज्ञा पर अभी तक कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है। लेकिन उससे पूछताछ के नाम पर नैतिकता, कानून और बेशर्मी की तमाम हदें पार की जा रही है। आखिर महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास को यह सब दिखाई क्यों नहीं देता, या वे भी पूर्वाग्रह से ग्रसित है।

Wednesday, November 12, 2008

महेन्द्र सिंह धोनी, पिस्टल और चरित्र प्रमाण पत्र


क्रिकेट में अपनी करिश्माई कप्तानी से भारत के तिरंगे को लहराने वाले महेन्द्र सिंह धोनी के लिए आज चरित्र प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ गई? जबकि इस देश के सफेदपोशों, आपराधिक चरित्र के मंत्रियों को बंदूक, राइफल, पिस्टल का लाइसेंस बेधड़क मिल रहा है, फिर देश के सपूत महेन्द्र सिंह धोनी के पिस्टल लाइसेंस में पचास अड़ंगे क्यों?
माना कि कानून सबके लिए बराबर होता है। धोनी ने भी सभी प्रक्रियाओं का पालन किया, पर उसे निपटाने में प्रशासन इतने नौटंकी क्यों कर रहा है? जबकि नेता-मंत्री-अधिकारी के आवेदनों पर पूरा महकमा कुत्ते की तरह दौड़ता रहता है।
जहां तक प्रक्रिया की बात है तो एक ही राज्य में अलग-अलग कानून चल रहे। रांची में कमिश्नर ने लाइसेंस के लिए स्पेशल ब्रांच और सीआईडी रिपोर्ट जरूरी कर दी है। जबकि दूसरी जगहों पर ऐसा नहीं है। वैसे भी कमिश्नर को यह अधिकार है कि वह जिसके चरित्र से संतुष्ट हों, उन्हें हथियार का लाइसेंस निर्गत कर सकते हैं। अब धोनी के चरित्र को तो बताने की जरूरत नहीं। पर, नेता-मंत्रियों के जो लाइसेंस जारी हुए, वह भी एक नहीं तीन-तीन कैसे? कई नेता और मंत्री ऐसे हैं, जिनके खिलाफ थानों में आपराधिक मामले दर्ज है। कुछ मंत्री के खिलाफ तो चार्ज शीट तक कोर्ट में दाखिल किये गये हैं, फिर उन्हें हथियारों के लाइसेंस कैसे दिए गए।

एक नजर हमारे माननीय मंत्रियों के चरित्र पर।

शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की- एक रायफल, एक बंदूक, एक पिस्टल (दो आपराधिक मामले दर्ज)
ग्रामीण विकास मंत्री एनोस एक्का- एक बंदूक, एक रायफल(दो आपराधिक मामले दर्ज), सिमडेगा से जारी हथियार अलग
पूर्व मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी : एक रायफल, एक पिस्टल
पूर्व गृह मंत्री सुदेश महतो: एक रायफल, एक पिस्टल
मंत्री कमलेश सिंह : एक रिवाल्वर, एक रायफल(एक आपराधिक मामला दर्ज)
पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी: एक बंदूक
जेएमएम नेता पंकज सिंह: एक रिवाल्वर, एक बंदूक(एक मामला)
झामुमो नेता नवीन चंचल : एक रिवाल्वर(एक मामला)
रामचंद्र चंद्रवंशी : एक बंदूक, एक रिवाल्वर, एक रायफल (दो मामले दर्ज)
थियोडर किड़ो : एक बंदूक
बसंत कुमार लोंगा : एक बंदूक(एक मामला)
झामुमो नेता शिवलाल महतो : एक रिवाल्वर
कांग्रेस नेता कुमार महेश सिंह : एक रिवाल्वर
योगेन्द्र साव : एक रिवाल्वर
विधायक प्रकाश राम: एक रायफल एवं बंदूक (एक मामला),
विधायक रामचंद्र सिंह : एक रिवाल्वर(एक मामला)
एमएलए जर्नादन पासवान: एक रायफल, एक बंदूक(दो मामले)
एमएलए सत्यानंद भोक्ता: एक बंदूक(एक मामला)
इनके चरित्र का क्या होगा? झारखंड प्रशासन बताएगा कि इनका चरित्र-प्रमाण किस उल्लू ने देखा?

Wednesday, November 5, 2008

मनसे की गुण्डागर्दी जारी, फिर मारा गया यूपी का एक भइया


पहले बेरहमी से पीटा, फिर उसके गले में रस्सी बांधकर खोली तक खींच कर ले गए, और फिर अधमरा कर मनसे के गुण्डे भइयों के नाम पर थूक कर चलते बने॥

धर्मदेव की हत्या का मामला अभी ठण्डा भी नहीं हुआ था कि मुम्बई में राज ठाकरे के गुण्डों ने एक और उत्तर भारतीय युवक राकेश की मंगलवार की रात पीट-पीट कर हत्या कर दी। मृतक युवक यूपी के संतकबीर नगर के दुधारा थाना क्षेत्र के ग्राम सियाकटाई का रहने वाला था। राकेश मुंबई के जिला रत्‍‌नागिरि के थाना व मोहल्ला चैपलून में रहकर लकड़ी के आरामशीन पर एक वर्ष से काम करता था।महाराष्ट्र में सरकारी संरक्षण में हो रही मनसे की गुण्डागर्दी थमने का नाम नहीं ले रहीं है। मंगलवार की रात काम से खोली लौट रहे राकेश को मनसे के गुण्डों ने जमकर पीटा और फिर उसके गले में रस्सी बांधकर खोली तक खींच कर छोड़ आये थे। सुबह पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उसकी लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और मुंबई में रह रहे उसके भाई को सूचना दी। राकेश के माता-पिता का कुछ दिनों पूर्व देहांत हो गया था। वर्तमान में उसका एक भाई महेश कुमार चौरसिया मुंबई में ही रहता है। अब तो इस तरह की घटनाएं महाराष्ट्र में आम होती जा रहीं है। मनसे के नंगे नाच पर महाराष्ट्र की नपुंसक सरकार और दिल्ली में बैठे उसके नपुंसक संरक्षक धृतराष्ट्र की तरह आखें बंद कर तमाशा देश कहे है, वहीं बिहार और यूपी के नेता और मंत्री गण अपनी-अपनी राजनीति करने में मगन है। अब तो जनता को ही कुछ करना होगा और इन नपुंसकों के लिए हथियार उठाना पड़ेगा? तभी शायद गोली का जवाब गोली और हत्या के बदले हत्या का मतलब समझ में आएगा।

Thursday, October 30, 2008

अभिनव भारत राष्ट्रवादी संगठन है!




मालेगांव बम धमाके मामले में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ एक संगठन का भी नाम सामने आया है। वह है अभिनव भारत। हालांकि इस संस्था से संबंधित सभी जानकारियां इंटरनेट पर उपलब्ध थीं, मगर इसका नाम सामने आने के बाद इसे हटा दिया गया है। क्या है अभिनव भारत? कौन चलाता है इसे?
आज से करीब दो साल पहले इस संगठन की स्थापना की गई। वैसे तो 'अभिनव भारत' काफी पुराना संगठन है, लेकिन इसका मौजूदा रूप महज दो साल पुराना है। संगठन की कमान गोपाल गोडसे की बेटी और नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी के हाथों में है। हिमानी विनायक दामोदर सावरकर की बहू भी है। मूल रूप से एक शताब्दी पहले सावरकर द्वारा ही 'अभिनव भारत' की स्थापना की गई थी। संगठन ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए बनाया गया था। हिमानी बताती है कि हमने इस संगठन को पुनर्जीवित किया। पिछले कुछ दशको मे हिंदुओ के खिलाफ हो रहे अत्याचार को देखते हुए हमने इसकी जरूरत महसूस की थी। इसके बाद समान विचारधारा वाले कुछ लोग साथ आए और हमनें 2006 में इस संगठन को अस्तित्व में लाया। हिमानी कहती है कि सावरकर ने 1952 में यह कहते हुए संगठन भंग कर दिया था कि अंग्रेजो के चले जाने के साथ ही संगठन का उद्देश्य पूरा हो गया, लेकिन हिंदुओ पर अत्याचार को देखते हुए हमने इसे पुन: शुरू किया।
हिमानी सावरकर का कहना है कि हिंदुओ के प्रति अन्याय के खिलाफ हम लड़ेगे। हम किसी तरह के आतंकवाद को समर्थन नही देते, लेकिन लगे हाथ यह भी स्पष्ट कर देना चाहते है कि हिंदू अपने ऊपर हो रहे अत्याचार बर्दाश्त नही करेगे। अगर ऐसी हिंदू विरोधी घटनाएं होती रही तो इसकी प्रतिक्रिया भी जरूर दिखेगी।

Wednesday, October 29, 2008

चलों चलें गृहयुद्ध की ओर


* तमाम बिहारियों से आह्वान है कि वे निकम्मे व नपुंसक मराठियों का संहार करने के लिए तैयार रहे।
* अब बोलों हिजड़े पाटिल-हत्या के बदले हत्या।
* इतिहास गवाह है जब-जब बिहारियों पर अत्याचार हुआ है, हथियार उठाने के लिए मजबूर हुए है।
* उठों..ठाकरे और पाटिल जैसे मराठियों से इस देश को मुक्त करो। मिटा दो ऐसे अतितायियों का नामोनिशान।
* सभी उत्तर भारतीय समुदाय मराठी और महाराष्ट्र का बहिष्कार करो।
* महाराष्ट्र के सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारी वापस आएं।
* * * * * * * * * * * * *
भाइयों, ये अंश है आज के उन ब्लागरों के जो मुंबई व आसपास के हिस्सों में उत्तर भारतीयों पर बरपाये जा रहे कहर से व्यथित है। इनका गुस्सा लाजमी भी है। परन्तु क्या हम अब एक नए गृह युद्ध की तरफ नहीं बढ़ रहे है? क्या केंद्र की निकम्मी सरकार वाकई देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकना चाहती है। अगर कांग्रेस इसी तरह गंदी राजनीति की चालें चलती रहींतो देश और समाज को तहस नहस होने से कोई नहीं बचा सकता। हमारे ब्लागर भाईयों ने जो विचार व्यक्त किए, क्या वो उचित है, अगर नहीं तो आखिर इसका समाधान क्या है?

Monday, October 27, 2008

..गोलियों का जवाब गोलियों से


..तो महाराष्ट्र का नपुंसक गृहमंत्री आर आर पाटिल गोलियों का जवाब गोलियों से देगा। मगर भाई लोगों ये मर्दानगी सिर्फ आज ही क्यों? जब मनसे के गुण्डे मुंबई में उत्तर भारतीयों पर कहर बरसाते है तो यह नपुंसक गृहमंत्री किस बिल में दुबका रहता है। सड़कों पर राज के गुण्डे जब सरेआम तांडव करते है तो महाराष्ट्र पुलिस व उसके आकाओं की मर्दानगी कहां चली जाती है। कई मुकदमों और गैर जमानती वारंट के बावजूद राज ठाकरे को गिरफ्तार करने में नाकाम रही पुलिस की आज इतनी सक्रिय कैसे हो गई? तो क्या ये मान लिया जाए कि महाराष्ट्र सरकार वोटबैंक के लिए शिखंडी बन चुकी है।मुंबई में हाल ही में पीटे गए उत्तर भारतीय रेलवे परीक्षार्थियों की आवाज बनने की इच्छा रखने वाले राहुल राज की आवाज आज मराठी पूर्वाग्रह से ग्रसित पुलिस ने दबा दी। इस अलोकतांत्रिक हादसे के बाद मुंबई का उत्तर भारतीय यह सवाल जरूर उठा रहा है कि जिस मुंबई पुलिस ने राज ठाकरे और उनके गुंडों पर विगत फरवरी माह से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जबकि उनके कारण जान और माल का काफी नुकसान भी हो चुका है, वही पुलिस क्या ऐसे व्यक्ति को जिंदा पकड़ने का प्रयास नहीं कर सकती थी, जो बार-बार यह कहता रहा कि वह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। आखिर महाराष्ट्र में बिहारियों पर अत्याचार कब तक होते रहेंगे? कब तक बिहारी ऐसी गंदी राजनीति के शिकार होते रहेंगे?

Friday, October 24, 2008

शर्म आती है हमें ऐसे मंत्री शिवराज पाटिल पर


यह हैं भारत के केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल। राजसी ठाठ बाट से रहना इनका पसंदीदा शगल है। भले ही इससे आम आदमी प्रभावित हो, लेकिन इनकों कोई फर्क नहींपड़ता। बात चाहें दिल्ली ब्लास्ट के बाद तीन घंटे में तीन सूट बदलने का हो या अहमदाबाद में घायलों का दर्द बांटने गए पाटिल का अपने जूतों को पानी से बचाने की नफासत दिखाने का। उनकी राजशाही का जवाब नहीं है। आज फिर इनकी एक कारगुजारी चर्चा में है। महज 15 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए पाटिल ने 2.77 लाख खर्च कराकर हेलीकाप्टर की सवारी की, ताकि राजधानी की भीड़भाड़ वे बच सके। आज जहां पूरा देश वैश्विक मंदी के दौर से गुजर रहा है वहां हमारे देश का एक केंद्रीय मंत्री मात्र 15 किमी की दूरी तय करने के लिए सरकारी हेलीकाप्टर की सवारी करता है।दक्षिण दिल्ली के खानपुर मे तिगरी स्थित आईटीबीपी के 47 वें स्थापना दिवस परेड समारोह में शिरकत के लिए पाटिल ने सफदरजंग हवाई अड्डे से खानपुर के लिए हेलीकाप्टर से उड़ान भरी। यही तो है हमारे पैसों का सरकारी दुरुपयोग। शर्म आती है हमें ऐसे मंत्री पर।

Wednesday, October 22, 2008

महाराष्ट्र में एक आतंकवादी की जीत


आखिरकार महाराष्ट्र में खुलेआम आतंक का तांडव करने वाला आतंकी राज ठाकरे की जीत हो ही गई। दरअसल, यह जीत मनसे या राज ठाकरे जैसे आतंकियों की नहीं, बल्कि पूरी तरह नपुंसक हो चुके महाराष्ट्र सरकार की है। महाराष्ट्र कांग्रेस के नपुंसक नेताओं ने जो राजनीति का गंदा खेल इस मवाली पार्टी और इसके कर्ताधर्ता राज ठाकरे को आगे करके खेलना शुरू किया है वह बेहद निंदनीय है और इसका खामियाजा उसे भुगतना ही पड़ेगा। पिछले दो दिनों से महाराष्ट्र में जो हो रहा है उसे पूरा देश देख रहा है। राज ठाकरे के गुण्डे जिस तरह से राज्य में समानान्तर सरकार चला रहे है और हिंसा पर हिंसा करते जा रहे है उससे महाराष्ट्र में नेताओं की नपुंसकता उजागर हो गई है। इस मामले पर अगर मनमोहन सरकार को भी नपुंसक कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्या पीएम मनमोहन सिंह को अब महाराष्ट्र में राष्ट्रीय शर्म नहीं दिखता? दरअसल यह सब कांग्रेस की गंदी राजनीति एक हिस्सा है। कांग्रेस ने इससे पहले इसी तरह की गंदी राजनीति पंजाब में भी खेली थी। परिणाम सन 1984 में भारी संख्या में हिंदू-सिख दंगे हुए और इंदिरा गांधी को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी, अपनी जान देकर। यहां मामला थोड़ा सा अलग है। महाराष्ट्र की राजनीति में शिव सेना की लड़खड़ाती स्थिति का फायदा विलासराव देशमुख और आर आर पाटिल जैसे शिखंडी नेता राज ठाकरे को आगे कर उठाना चाहते है। राज ठाकरे की गंदी राजनीति का इस्तेमाल जिस तरह से कांग्रेस कर रही है उसका खामियाजा आम नागरिकों को उठाना पड़ रहा है।

Tuesday, October 21, 2008

नई दुनिया..एक शर्मनाक पत्रकारिता



नई दुनिया..दिल्ली की नई सुबह अब नई दुनिया अखबार के साथ। जी हां, बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर के साथ दिल्ली में एक कथित बड़ा अखबार शुरू किया गया। दिल्ली में इस अखबार का जिम्मा संभाला एक भारी भरकम संपादक ने, नाम है आलोक मेहता। टीम भी बनी भारी भरकम नामी गिरामी पत्रकारों की, जो अपने आप में हर क्षेत्र के विशेषज्ञ माने जाते है। विगत 2 अक्टूबर को इसका बड़े धूमधाम से प्रकाशन शुरू हुआ, लगा की वरिष्ठ पत्रकारों की टीम कुछ अच्छा करेगी, मगर इस अखबार की तो जैसे हवा ही निकल गई, जब बजरंग दल के विनय कटियार का 19 अक्टूबर को साक्षात्कार छपने के बाद संपादक को उनका पत्र मिला। कम से कम इतने बड़े संपादक से तो यह आशा कत्तई नहीं थी कि वे अपने ही पत्रकार की रिपोर्ट के खिलाफ विनय कटियार का बयान प्रकाशित करें। मुझे शर्म आती है ऐसी पत्रकारिता पर। अब प्रश्न यह उठता है कि इस अखबार का कंटेंट संपादक या पत्रकार देंगे या छजवानी बंधु?

Saturday, October 18, 2008

जिंदगी फिर दोराहे पर लाकर खड़ा कर चुकी है


शामली नाम है उस लड़की का, नाम के अनुसार प्यारी सी गुड़िया..मगर वक्त और हालात ने उसकी मासूमियत को बिखेर कर रख दिया। नोएडा के एक पार्क बैठे हुए अचानक एक दिन वो मुझसे मिली। हाय..हेलो के बाद दोस्ती हुई। फिर एक दिन मैंने उसके जिंदगी के कुछ लम्हों को कुरेदा..फिर तो उसकी वो हंसी भी गायब हो गई, जो यदा-कदा मुझे दिख जाती थी। आज उसने मुझे एक पोस्ट भेजा। उस पोस्ट को उसी के शब्दों में प्रकाशित कर रहा हूं।
.....ट्रेन का लंबा सफर और मैं बिल्कुल अकेली बैठी खिड़कियों से बाहर टकटकी लगाए उन तेजी से पीछे भागते पेड़ों को निहारे जा रही थी। शायद मैं उन्हें देखकर भी नहीं देख पा रही थी, क्योंकि मैं वहां मौजूद जरूर थी पर वहां थी नहीं। जैसे मानो सब कुछ तो वहीं ठहरा है बस बदली है तो चंद समय की घडि़यां, जब मैं चली तो तीन साल पहले का समय था और आज तीन साल गुजर चुके फिर भी सब कुछ ज्यों का त्यों ही है। अचानक उसे वो गुजरे अनगिनत लम्हें याद आने लगे जिसमें खुशी से ज्यादा थी गमों की रेखाएं। जून 2005 मेरी बीकाम का रिजल्ट आ चुका था और घर में सभी लोग काफी खुश थे। मैं अच्छे अंको से परीक्षा जो उत्तीर्ण की थी। मम्मी पापा और अपने पूरे परिवार की लाडली मैं दिनभर घर में इधर से उधर उछलती कूदती रहती, कभी भैया से नोकझोंक, तो कभी भाभी से इठलाती और कभी अपने प्यारे-प्यारे भतीजे को खिलाती। घर में इतनी लाडली थी कि कोई कभी कुछ कहता ही नहीं था। पापा ने भी एकबार भी नहीं पूछा कि बेटा तुम एमकाम क्यूं नहीं करना चाहती? शायद यह उनके स्वभाव में ही शामिल नहीं था बच्चे जो करना चाहे करें बस उन्हें पैसे देने से मतलब होता था। एमकाम के फार्म की अंतिम तारिख भी गुजर गई और पापा ने एक बार फिर भी नहीं पूछा। पर मैं जानती थी कि पापा के मन में कुछ और है।उसके सपनों की उड़ान अभी बाकि थी। और कुछ ही समय घर में अभी बीते होंगे कि रिश्तेदार और पड़ोसियों की आंखों में जैसे मैं किरकिरी की तरह चुभने लगी। कब कर रहें हैं शादी, कोई लड़का देखा कि नहीं। आखिर आपको कैसे लड़के की तलाश है। कब करेंगे शादी, न जाने कितने सवाल, पर मेरी मम्मी और पापा का एक जवाब-- हमें अपनी बेटी को किसी की दासी बनाकर नहीं बिदा करना हम जब तक उसे अपने पैरों पर न खड़ा कर ले नहीं बिदा करना। सौ सवाल के एक जवाब ने कर दिया सभी को खामोश। आखिर हो भी क्यों न, मेरी दो बहनों के साथ जैसा हुआ सभी वाकिफ थे। बड़ी दीदी एक घरेलू महिला थीं जिन्हें उनके ससुराल वालों ने कितने दुख दिए, शायद वो दर्द इतने थे कि कोई भी लड़की शादी के नाम पर नफरत करने लगती और कुछ ऐसा ही हुआ शामिली के साथ भी और मैं भी शादी जैसे पवित्र बंधन से नफरत करने लगी मुझे लगता था कि जहां प्रेम न हो ऐसी शादी का क्या अर्थ और क्या मायने जिसके लिए अपना घर परिवार सबकुछ छोड़कर एक लड़की जाती है वो ही उसे वो मान सम्मान, प्रेम और अधिकार की बजाय उसपर कहर बरसाए तो आखिर वो कहां जाए। मां बाप की भी मजबूरी, कि लड़की पराया धन है उसे जब शादी के पहले नहीं रख सकते तो फिर शादी के बाद रखना तो जैसे समाज के नियम कानूनों को तोड़ना जितना अक्षम्य अपराध ही होगा। फिर भी दी ने किसी तरह नौ महीने अपनी मासूम सी बेटी के साथ गुजारे। हर पल तिल-तिल जलती और मरती रही वो और समाज था कि ताने पर ताने कसता रहा। वो इंसान कैसा था जो अपनी मासूम सी फूल सी बेटी को एक झलक देखने के बाद दोबारा कभी नहीं आया। कितना भी कोई बेरहम हो पर इतना नहीं हो सकता, जिस फूल को देखकर पत्थर भी पिघल जाता पर ये दहेज का भूखा इंसान नहीं पिघल रहा था। पर शायद उसमें इंसानियत ही नहीं थी.....दिल पर गहरी चोट दे गया था वो हादसा जो कभी न भरे शायद ऐसे जख्म थे।....और फिर मेरी दिल में भी आत्मनिर्भर बनने की महत्वाकांक्षा हिलोरे मार रही थी। उस पर से मम्मी पापा का पूरा-पूरा सहयोग मिला। पापा मैं अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हूं मैं अपने जीवन में किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती। शादी तो जिंदगी का अंत है पर मैं जिंदगी की शुरूआत करना चाहती हूं, मैं ऐसे क्षेत्र में जाना चाहती हूं जहां मैं kisi के दर्द को बांट सकूं, लोगों तक उसकी दर्द भरी आह को पहुंचा सकूं। शायद जिंदगी में अब तक जो देखा वो काफी है, फिर कभी किसी के साथ कोई अन्याय न हो। कुछ ऐसे ही सपने थे शामिली के जो उसे जिंदगी में कुछ करने को हर पल मजबूर करते थे। लेकिन इसके लिए अपनों से दूर जाना होगा। मुश्किल था शामिली के लिए, अपने परिवार से दूर रहना, वह एक दिन भी मम्मी के बिना नहीं रह पाती थी। रिश्तेदारों ने तो टकटकी लगाई थी कि कैसे रहेगी शामिली, घर से दूर। आखिर उसके सपनों के आगे परिवार का प्रेम छोटा पड़ गया और निकल पड़ी मैं घर से कुछ करने की लालसा में.... आसान न थी डगर पर फिर भी था चलने का हौसला और जिंदगी में कुछ करने की ख्वाइश। हर पल जिंदगी कुछ नए ताने बाने बुनती और कहती कि कुछ कर गुजरना है। इस बीच भी लोगों के खोखले सवाल पीछा ही करते थे। कभी दबी जुबान में बाहर भी आ जाते लेकिन अभी उसे पता था कि उसका लक्ष्य उसके सामने है उसे कुछ ऐसा करना है जो दुनिया की भीड़ से उसे अलग कर दे। देखते देखते एक और साल गुजरा और दिल्ली में उसकी पढ़ाई भी खत्म हो गई। फिर उठे वही सवाल अब नहीं करवानी नौकरी कर दो इसकी शादी, नहीं तो भेज दो वापस घर। अब तो अति हो गई जब मेरे घर वालों को मेरी नौकरी से परहेज नहीं तो गैरो को क्यूं हो भला। आंशू के साथ जिंदगी ने फिर चुना एक पथरीला रास्ता छोड़ दिया सब कुछ और निकल पड़ी अपनों से बहुत दूर किसी दूसरे प्रांत में जहां कोई उससे ऐसे बेतुके सवाल न करें और न मांगे उससे भविष्य का हिसाब। अब मैं पहले से बहुत खुश और सकून भरी जिंदगी जी रही थी क्योंकि अब मेरी जिंदगी का वो सपना साकार हो चुका था और मम्मी पापा की भी तपस्या रंग लाई थी। धीरे-धीरे एक साल गुजर गया पता ही नहीं चला जैसे पर अब इस समाज में भी जहां मैं रह रही थी लोगों को वही सारी समस्याएं दिखने लगी। समाज की अपेछाएं वक्त के साथ बढ़ने लगी, लेकिन मेरी दिलों के जख्म को देखने और समझने वाला कोई नहीं था। क्यूं होती है उसे इस समाज के नुमाइंदों से नफरत शायद अब तक तो मैं भी उन्हें भुला ही चुकी थी। पर वक्त और लोगों के व्यवहारों ने फिर मुझे कुरेदना शुरू कर दिया था। एक बार फिर मुझे याद दिला दी कि कैसे जिए। आखिर कैसे बीते थे ये दो साल? अक्सर याद आती थी उस बचपन की जहां कुछ कहने से पहले ही सबकुछ मिल जाता। घर का लाड प्यार सबकुछ पर फिर सपने सब भुला देते हैं। कहीं रहने के लिए वहां दिल का लगना बहुत जरूरी है, और शायद वहां बने मित्रों के साथ दिल भी लग गया था। अचानक फिर ली जिंदगी ने एक नई करवट और एक ही दिन में उस ट्रेन के सफर की तरह मेरी जिंदगी ने रास्ता बदल दिया और छूट गए वो सारे पुराने साथी जिसकी मंजिल जहां आई वो वहीं उतर गया। शामिली का मन अब उदास सा रहना लगा, फिर नए लोग और नई दुनिया लेकिन समझने वाला कोई नहीं। धीरे-धीरे मेरी दुनिया का सामना करने की ताकत भी खत्म होने लगी। कैसे कहे कि आज मुझे वो गुजरे जमाने याद आने लगे, जिन सपनों के लिए मैं ne सबकुछ छोड़ा था वो भी अब मुझे पराए से लगने लगे। डूब सी गई वो अपनी पुरानी यादों में, साहस था कि मधम पड़ने लगा। मैं शादी नहीं करना चाहती थी पर समाज और रिश्तेदारों की जोर जर्बदस्ती मुझे कमजोर कर रही थी। जिंदगी फिर एक ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर चुकी है......मेरी

Thursday, October 9, 2008

..तो बिन सात फेरे ही होंगे हम तेरे



भाइयों और भाभियों, लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए एक बहुत ही अच्छी खबर है। अगर महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव पास हो गया तो फिर [कथित रूप से कुंवारे या शादीशुदा] युवक-युवतियों को बिंदास साथ-साथ रहने से कोई नहीं रोक सकता। मगर, भाई लोगों क्या यह उचित होगा? जरा कल्पना करें-अगर ऐसा हो गया तो फिर शादी जैसे पवित्र बंधन का क्या औचित्य रह जाएगा? पति-पत्नी के संवेदनशील रिश्ते कहां जाएंगे। तब शायद सामाजिक पतन की पराकाष्ठा होगी और सात फेरों का बंधन व पति-पत्नी का पवित्र रिश्ता गर्त में जाने लगेगा। कम से कम महाराष्ट्र सरकार ने तो इसका श्रीगणोश कर ही दिया है।जी हां, महाराष्ट्र विधानसभा ने लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी जामा पहनाने के लिए एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है। यह प्रस्ताव जस्टिस मल्लीमथ कमेटी की सिफारिशों पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि अगर पुरुष और महिला एक उचित अवधि से एक दूसरे के साथ रह रहे है तो उन्हें एक दूसरे को शादीशुदा पति-पत्नी की तरह समझना चाहिए। यानी बिना शादी किए साथ-साथ रहने वाले युवक-युवती भी पति पत्नी का दर्जा पा सकते है। साथ ही साथ इससे बहु पत्नी प्रथा को भी बढ़ावा मिलेगा। मतलब साफ है बिन सात फेरे ही हम होंगे तेरे। फिलहाल को महाराष्ट्र विधानसभा का यह फैसला केंद्र के पास विचाराधीन भेज दिया गया है, परंतु महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले ने एक बहुत बड़े विवाद को जन्म दे दिया है।

Monday, September 29, 2008

..तो अपराध है समलैंगिक यौन संबंध


समलैंगिकता कानून पर कोर्ट में किरकिरी का सामना कर रही सरकार को आखिरकार अपने ही मंत्री के खिलाफ हाईकोर्ट में बोलना पड़ा।सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास के रजामंद वयस्कों में समलैंगिक यौन संबंध की अनुमति संबंधी दृष्टिकोण को खारिज करने को कहा है।यानी सरकार के इस केंद्रीय मंत्री का बयान कोई मायने नहीं रखता। जैसा कि पिछले दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय ने समलैंगिक यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर निकालने की वकालत की थी, मगर गृह मंत्रालय ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ऐसे कृत्यों के बारे में दंड के प्रावधानों को हटाया नहीं जा सकता। परिणाम स्वरूप दिल्ली हाईकोर्ट ने भी समलैंगिक यौन संबंध को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी थी।अब सवाल यह उठता है कि इस मर्ज का इलाज क्या है। विश्व में किसी भी देश से ज्यादा एड्स रोगी भारत में है। मेरे विचार से समाज में सेक्स से जुड़े विभिन्न पहलुओं को जब तक स्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक इस मर्ज का कोई इलाज नहीं है। आखिर समलैंगिक यौन संबंध जिसे हमारे कानून ने अप्राकृतिक यौन संबंधों की श्रेणी में रखा है, का कितना औचित्य है। चोरी छिपे ही सही, मगर समलैंगिक यौन संबंध तो तकरीबन हर जगह है।

Friday, September 26, 2008

आतंकियों का एक और प्रवक्ता अर्जुन सिंह


यह लो भाइयों, आतंकियों का एक और प्रवक्ता सामने आया। यह प्रवक्ता है हमारे देश का बुजुर्ग केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह।अब तो लगता है देश के गद्दारों और अमन के दुश्मनों पर लगाम लगना बहुत ही मुश्किल है। इस केंद्रीय मंत्री ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के दिल्ली बम विस्फोटों के मामले में आरोपी दो छात्रों को कानूनी सहायता देने के फैसले का खुलकर समर्थन किया है। मामला साफ है, सरकारी पैसे का खुलेआम दुरुपयोग, वह भी अमन के दुश्मनों और देश को तबाह करने का मंसूबा रखने वाले आतंकियों के लिए।जामिया विश्वविद्यालय का कुलपति प्रो. मुशरुल हसन ने कल ही एक राष्ट्र विरोधी और बेहद आपत्तिजनक फैसला लेते हुए कहा था कि वह पकड़े गए आतंकियों को कानूनी सहायता देगा। कहां हम सरकार से अपेक्षा कर रहे थे कि वो इस आपत्तिजनक फैसले पर विरोध जताते हुए इस संदिग्ध कुलपति से इस्तीफा ले लेगी, मगर आश्चर्यजनक तरीके से सरकार के एक जिम्मेवार मंत्री ने राष्ट्र विरोधियों का समर्थन कर दिया। तो क्या दिल्ली पुलिस के उस जाबांज सिपाही मोहन चंद्र शर्मा की शहादत को कोई मोल नहीं है, इस निकम्मी सरकार के लिए। यह चिंतनीय विषय है।फिर यह सरकार क्यों बेवजह मोहन चंद्र शर्मा जैसे लोगों की हत्याएं करवा रही है। अगर आतंकियों से इतना ही प्यार है अर्जुन सिंह और मुशरुल हसन को तो देश को खुल कर क्यों नहीं बताते। फिर देखते ऐसे लोगों को जनता किस तरह सबक सिखाती।

Tuesday, September 23, 2008

..तो दस बार सोचेंगे विदेशी निवेशक


भारतीय उद्योग जगत को शर्मसार कर देने वाली एक और खबर। सिंगूर में टाटा प्लांट के गार्डो पर लोहे की राड से हमला किया गया। वह भी ऐसे समय में जब कि टाटा दु:खी मन से अपने नैनो परियोजना का काम चुपचाप स्थानांतरित कर रही है। इससे ठीक एक दिन पहले दिल्ली से सटे औद्योगिक नगर ग्रेटर नोएडा में ग्रेजियानो ट्रांसमिशन इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी के कुछ गुंडे टाइप कर्मचारियों ने कंपनी के सीईओ को लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला। इस दोनों घटनाओं में काफी समानता है। ग्रेटर नोएडा की घटना तो स्थानीय पुलिस की लापरवाही दर्शाती है वहींसिंगूर में पिछले एक साल से जो हो रहा है वह विशुद्ध रूप से राजनीति का एक गंदा स्वरूप है।
बहरहाल, ये घटनाएं देश की उद्योग नीति की कमजोरियों को दर्शाती है तथा ऐसी घटनाएं विदेशी निवेशकों के समक्ष भारत की छवि को धूमिल ही करेंगी। खास कर देश के श्रम मंत्री ऑस्कर फर्र्नाडिस का वह बयान को विदेशी निवेशकों को दस बार सोचने पर मजबूर कर देगा, जिसमें उन्होंने सीईओ की हत्या के बाद कहा था कि यह हत्या कंपनियों के प्रबंधकों को एक चेतावनी है। मतलब साफ है-कंपनिया निकम्मे कर्मचारियों को भी पाल कर रखे। उन्हें निकालेंगे को यही होगा। वाह रे हमारे देश के श्रम मंत्री।

Monday, September 22, 2008

शर्मसार हुआ भारतीय उद्योग जगत

भारतीय उद्योग जगत को शर्मसार कर देने वाली एक घटना घटी। ग्रेजियानो ट्रांसमिशन इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी के कुछ गुंडे टाइप कर्मचारियों ने कंपनी के सीईओ को लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला। इस घटना ने भारतीय उद्योग जगत का चेहरा दुनिया में शर्मसार किया है। अगर किसी कारखाने में व्यवस्था और कामगारों के बीच हाथापायी भी हो जाए तो ये उस देश की उद्योग नीति की कमजोरी को उजागर कर देती है परन्तु यहां तो उन गुंडे टाइप कर्मचारियों ने अपने ही रोजगारदाता कंपनी के सीईओ को पीट-पीट कर मार डाला , इस घटना से विश्व में भारतीय उद्योग की निंदा जरूर होगी। अब कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत में उद्योग स्थापित करने से पहले जरूर सोचेगी और शायद हिचकिचाए भी। इससे पहले सिंगुर-विवाद ने भी एक बहुत ग़लत प्रभाव छोड़ा था और अब ये ज्वलंत मामला। क्या हमारे देश में उद्योगों के लिए कोई व्यवथित नियम नहीं है कि आम जनता को हर समय नियम और कानून अपने हाथों में लेना पड़ता है। सीईओ एलके.चौधरी ने तो बस अपने शीर्ष प्रशासन के हुक्म पर अमल किया होगा और उसे अपनी जान से हाथ धोनी पडी। आख़िर कामगारों के अत्यधिक गुस्से का कारण इतना आसान नहीं हो सकता, कहीं न कहीं प्रशासन भी गुनाहगार है । उधर, कंपनी के प्रॉडक्शन सुपरवाइज़र राजपाल ने आरोप लगाया कि सूचना के दो घंटे बाद बिसरख पुलिस मौके पर पहुंची। इतना ही नहीं , बिसरख थाना इंचार्ज जगमोहन शर्मा सीनियर अफसरों को इस घटना को मामूली मारपीट बताते रहे और उन्हें कई घंटे तक अंधेरे में रखा। इस घटना का एक पहलू और भी है, जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, क्या इन नीजी कंपनियों के लिए कोई पक्के नियम और क़ानून नहीं है सरकार की ओर से जो ये अपनी मनमानी करते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो ये सीईओ की मौत सरकार को एक चेतावनी है कि नीजी उद्योगों में हस्तक्षेप करे। आख़िर उस मुनाफा का किसी को क्या लाभ जिसमें जान ही चली जाए। साथ ही साथ इस घटना की कड़ी निंदा होनी चाहिए और दोषी गुंडे टाइप कर्मचारियों को उचित दंड भी मिलना चाहिए जिससे उद्योग जगत के अनुशासन तोड़ने वालों को भी सरकार की ओर से चेतावनी मिल सके।

Saturday, September 20, 2008

क्या प्यार करना बड़ा गुनाह है...


क्या प्यार करना इतना बड़ा गुनाह है॥कि उसके बदले कोई अपना ही उसे निर्ममता पूर्वक मार डाले? बचपन से ही तो हर बच्चों को प्रेम करना सिखाया जाता है, जब वे बड़े होकर उसी प्यार के साथ जीने का निर्णय लेना चाहते है तो फिर हमारा समाज उसका दुश्मन क्यों हो जाता है? ग्रेटर नोएडा के एक गांव की घटना इसकी मिसाल है। वहां 18 साल की एक लड़की और उसके प्रेमी को इसलिए मार डाला गया, क्योंकि वे एक ही जाति के होने के बावजूद विभिन्न आयवर्ग में आते थे। एक परिवार रईस, दूसरा बेहद गरीब। दोनों परिवारों को अपने युवा होते बच्चों का प्रेम बर्दाश्त नहीं हुआ। इस पर ऐसा वहशीपन दिखाया गया कि दोनों को न सिर्फ पीट-पीटकर मार डाला गया, बल्कि उन्हें आग के हवाले भी किया गया। हमारे देश में यह पहली घटना नहीं है। जाति और समाज के नाम पर झूठी शान कायम रखने की जिद के चलते कितने ही प्रेमियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। कई बार तो बाकायदा पंचायत बुलाकर युवा प्रेमियों की हत्या का फरमान जारी किया जाता रहा है। ऐसी घटनाएं गांवों में ही ज्यादा हो रही हैं। अंतर्जातीय शादियों को लेकर शहरों में तो नजरिया काफी बदला है, वहां अब अभिभावक अपने बच्चों के ऐसे प्रेम और विवाह के प्रति उदार हुए हैं, पर ग्रामीण इलाकों में हालात पहले की तरह ही हैं। वहां सामंतवादी रूढि़यां अभी भी जस की तस कायम हैं। वहां संपन्नता, तो पहुंची है पर समझ की वह रोशनी नहीं पहुंची, जो वहां के समाज को ऐसे मामलों में उदार बनाती है। वहां आज भी अलग जाति-वर्ग के युवाओं के प्रेम को अत्यधिक चिढ़ के साथ देखा जाता है और उसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया जाता है। झूठी प्रतिष्ठा का सवाल न जाने और कितने प्रेमियों की जान ले लेगा। आखिर कब बदलेगी ऐसी प्रवृति? कब रुकेगा यह वहशीपन?

Tuesday, September 16, 2008

यह गृहमंत्री नपुंसक है


वाराणसी, मुंबई, बेंगलूर, अजमेर, जयपुर, अहमदाबाद और अब देश की राजधानी दिल्ली। आतंक के शिकार होने वाले शहरों और बेगुनाहों के कत्ल की सूची लंबी होती जा रही है। आतंकी जब चाहे, जहां चाहे आम लोगों को निशाना बनाते जा रहे है और इस देश का नपुंसक गृहमंत्री हर आतंकी वारदात के बाद एक ही रटा रटाया बयान देता है-कानून के अनुसार कड़ी कार्यवाई होगी। आखिर हम कब तक ऐसे नपुंसक शासकों के भरोसे मरते रहेंगे। 10 जनपथ के इन पालतू नेताओं के हाथों क्या देश सुरक्षित है। कत्तई नहीं। इस नपुंसक गृहमंत्री के चार साल के शासन में आज तक कोई ऐसी कार्ययोजना नहीं बनी, जिससे आतंकियों में खौफ पैदा हो सके। हां, फैशन परेड में यह नेता सबसे टाप पर है। रोजाना नए-नए सूट पहनना, जुते बदलना और महंगे इंर्पोटेड परफ्यूम का इस्तेमाल करना इसका पसंदीदा कार्य है। इसे क्यू फिक्र होने लगी इस देश की। इसका जीता-जागता नमूना मिला शनिवार को राजधानी में हो रहे सीरीयल ब्लास्ट के मौके पर, जब शाम 6 बजे के बाद राजधानी में आतंकियों के हमले से दिल्ली थर्रा रहा था और बेकसूर मर रहे थे, मगर हमारे माननीय गृहमंत्री अपने सफारी शूट बदलने में मशगूल थे। वाह रे देश के गृहमंत्री..अरे अब भी कुछ शर्म बचा है तो अपने मंत्रालय जाकर आतंकियों की फाइलें निकलवाओं और मीडिया में बयान न देकर उस पर वास्तविक कार्यवाई करों।

Monday, September 15, 2008

किसके बाप की है मुंबई!


किसके बाप की है मुंबई! राज ठाकरे, उसके ताऊ बाल ठाकरे या वहां की शिखंडी सरकार के मुखिया विलास राव देशमुख या आरआर पाटिल जैसे हिजड़े नेताओं की। इन सब के बीच एक और नाम आता है। मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त [कानून व्यवस्था] के एल प्रसाद का, जो एक बेदाग छवि के आईपीएस जाने जाते है। आखिर ऐसा क्या कह दिया के एल प्रसाद ने जो अपनी बिल में ही भौंकने वाले राज ठाकरे और उसके ताऊ बाल ठाकरे सरीखे चूहों के साथ-साथ महाराष्ट्र के शिखंडी सरकार के उप मुख्यमंत्री आरआर पाटिल को भी चुभने लगी। क्या राज्य में कुख्यात महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की गुण्डागर्दी के खिलाफ के एल प्रसाद को नहीं बोलना चाहिए? क्या उन्हें भी हिजड़े नेताओं की तरह मनसे के गुण्डा प्रमुख राज ठाकरे को खुले साड की तरह छोड़ देना चाहिए। ताकि भाषा और क्षेत्रवाद का आतंक फैला कर ठाकरे खानदान राजनीतिक दुकानदारी चलाता रहे। पूरे देश में आतंकियों पर लगाम लगाने की बात कही जा रही है, फिर महाराष्ट्र के इन कथित आतंकवादियों पर नियंत्रण क्यों नहीं हो रहा है। क्या इस लिए कि आर आर पाटिल जैसे नेता इस राज्य में उप मुख्यमंत्री है और राज ठाकरे जैसे आतंकियों का संरक्षक बन कर बैठे है ताकि अगले चुनाव में भाषा का विष पिला कर कुर्सी से चिपके रह सके। मगर यह बेहद खतरनाक है। शिव सेना प्रमुख अपने अखबार के संपादकीय में लिखते है कि मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त के एल प्रसाद की मुंबई पर की गई टिप्पणी अमर्यादित है। वाह रे बुढ़ऊ ठाकरे..अब आप जैसे जहरीले और उदंड राज नेता के एल प्रसाद जैसे बेदाग अधिकारी को मर्यादा सिखाएंगे। महाराष्ट्र गुण्डा सेना का प्रमुख राज ठाकरे के एल प्रसाद को वर्दी उतार कर बयान देने की चेतावनी देता है और सरकार मौन रह कर आतंकियों को प्रोत्साहित करती है।

Tuesday, September 9, 2008

10 सितंबर, काला बुधवार: बेकार आशंका


लार्ज हेड्रोन कोलिडर [एलएचसी] जी हां, यही नाम है उस मशीन का, जिसके बारे में रोजाना टीवी चैनल वाले लोगों को डरा रहे है। यह जिनेवा स्थित परमाणु शोध प्रयोगशाला सर्न में रखी गई है, और आज 10 सितंबर, यानी बुधवार को यहां दुनियाभर के लगभग 2500 वैज्ञानिक जुटेंगे और धरती के 330 फुट नीचे इस मशीन के जरिए भौतिकी का सबसे बड़ा प्रयोग करेंगे।चौदह साल के लंबे इंतजार के बाद पृथ्वी की अनेक गुत्थियां सुलझने को हैं और वैज्ञानिकों की मानें तो वह अब तक के सबसे विशाल परीक्षण के जरिए ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य का पता लगाने की कोशिश करेंगे। टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में टीवी चैनल वाले बेतुकी और बेकार आशंकाओं को बता कर लोगों को गुमराह कर रहे है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक महाविस्फोट से हुई थी और वैज्ञानिक 27 किलोमीटर लंबी इस मशीन से विस्फोट कर एक बार फिर वैसी ही परिस्थितियां पैदा करेंगे, ताकि दुनिया के निर्माण के रहस्य का पता लगाया जा सके। प्रयोग करने वाले वैज्ञानिक किसी भी ऐसी आशंकाओं को निराधार बता रहे हैं, जो अफवाहें उड़ाई जा रहीं है। प्रयोग से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी का कहना है कि एलएचसी से धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा कोई खतरा होता तो वैज्ञानिक यह प्रयोग करने का जोखिम नहीं उठाते।उन्होंने कहा कि ब्रह्मांड की उम्र लगभग 14 अरब वर्ष और धरती की उत्पत्ति की उम्र करीब साढ़े चार अरब वर्ष मानी जाती है। तब से लेकर अब तक ब्रह्मांड में न जाने कितनी टक्कर हुई हैं। लेकिन धरती के अस्तित्व पर कभी कोई संकट नहीं आया।एलएचसी से परखनली में छोटे कणों में ऊर्जा पैदा की जाएगी। इससे प्रोटोन एक दूसरे से टकराएंगे। इस दौरान ऊर्जा का स्तर सात गुना ज्यादा होगा। यह अब तक का सबसे ज्यादा हासिल किया जाने वाला स्तर होगा। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस परीक्षण के जरिए भौतिक विज्ञान के कुछ बड़े सवालों के जवाब ढूं़ढे़ जा सकेंगे, जैसे- ब्रह्मांड जैसा दिखाई देता है, वैसा क्यों है और द्रव्य गुरुत्वाकर्षण तथा रहस्यमयी डार्क मैटर को कैसे स्पष्ट किया जा सकता है आदि। इस परीक्षण के पीछे डाक्टर लिन इवांस हैं, जो एक खनिक के पुत्र हैं। उनका कहना है कि विज्ञान के प्रति वे तब आकर्षित हुए जब वह कम उम्र के ही थे। एक अन्य वैज्ञानिक मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन कोक्स हैं।

Wednesday, August 27, 2008

राउरकेला का हनुमान वाटिका





पिछले दिनों एक पारिवारिक कार्यक्रम के सिलसिले में मेरा उड़ीसा के एक औद्योगिक शहर राउरकेला में जाना हुआ। नई दिल्ली से दो दिनों की थकान भरी यात्रा से होता हुआ जब मैं इस औद्योगिक नगरी राउरकेला में प्रवेश किया तो शाम हो चुकी थी। शहर में प्रवेश करते ही मुझे भगवान हनुमान की एक बहुत बड़ी प्रतिमा नजर आई। प्रतिमा इतनी विशाल थी कि मेरी नजर ही नहीं हट रही थी। जानने की उत्सुकता हुई, तो पता चला इसकी ऊंचाई 74 फुट 9 इंच है, और यह प्रतिमा एशिया में सबसे ऊंची है।अगले दिन मैं अपने मित्रों के साथ इस मंदिर के दर्शन और इसके बारे में जानने के लिए चल पड़ा। इस मंदिर जिसका नाम हनुमान वाटिका है, राउरकेला शहर का एक महत्वपूर्ण स्थल है। शनिवार और रविवार के अलावा विशेष दिनों में यहां भगवान हनुमान की पूजा के लिए सीमावर्ती झारखंड, बिहार और सुदूर छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु आते हैं।यह हनुमान वाटिका 12 एकड़ के क्षेत्र में फैली है। इसमें भगवान शिव, जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, वैष्णो देवी, सोमनाथ, मां मंगला, मां विमला और भगवान श्रीराम के छोटे मंदिर भी हैं।अभी हाल फिलहाल इस परिसर में सांई राम का भी एक मंदिर बनाया गया है। इस बेमिसाल प्रतिमा के शिल्पकार आंधप्रदेश के जाने माने कलाकार टोगु लक्ष्मण स्वामी हैं जिन्हें इसे बनाने में दो वर्ष लगे।बताते है कि जब तत्कालीन मुख्यमंत्री बिजू पटनायक ने 23 फरवरी 1994 को इस प्रतिमा का अनावरण किया था तो प्रतिमा पर माला पहनाने के लिए उन्हें क्रेन के जरिए ऊपर ले जाया गया था। कुल मिला कर इस शहर के लिए यह मंदिर एक एतिहासिक धरोहर है, जिसे संभालना बहुत जरूरी है।

Sunday, August 17, 2008

शिखंडी सरकार के मुंह पर तमाचा?


शुक्रवार को जहां सारा देश स्वतंत्रता दिवस की 62वीं सालगिरह मना रहा था, वहीं कश्मीर घाटी में केंद्र सरकार के मुंह पर कालिख पोतते हुए अलगाववादियों ने पाकिस्तानी झंडे फहराए। केंद्र की मनमोहन सरकार ने इस मामले पर जिस तरह से शिखंडी रवैये का परिचय दिया है, इससे करोड़ों हिंदुस्तानियों का सिर शर्म से झुक गया है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जिस ऐतिहासिक लाल चौक पर 60 साल पहले बड़ी शान से तिरंगा फहराया था, शुक्रवार को वहीं पर अलगाववादियों ने भारत सरकार को तमाचा मारते हुए पाक ध्वज फहराए। यह सब कुछ उस समय हुआ जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मना रहा था।घाटी के हर मस्जिद से शुक्रवार को भारत विरोधी नारे लगाए जाते रहे और दिल्ली के लाल किला से हमारे पीएम मिमियाते रहे। शुक्रवार को घाटी में जो कुछ भी हुआ इसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि कश्मीर भारत का हिस्सा है। पुलिस और अ‌र्द्धसैनिक बल शांत होकर राष्ट्रविरोधी तत्वों का तमाशा देख रहे थे।जुमे की नमाज के बाद तो अलगाववादियों ने जुलूस निकाल कर जम कर हिंदुस्तान को कोसा। इन नमकहरामों ने 'हम क्या चाहते-आजादी, यहां क्या चलेगा-निजाम-ए-मुस्तफा, भारत के आईवानो को-आग लगा दो, पाकिस्तान से नाता क्या-लाइल्लाह लिलल्लाह, जीवे-जीवे पाकिस्तान' के नारे भी लगाए गए। लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं था। विडंबना यह है कि देश के अन्य राज्यों में अगर ऐसी कोई घटना सामने आती है तो उसे गिरफ्तार कर उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर हो जाता है। सवाल यह उठता है कि यहां सरकार की यह दोगली नीति कब तक चलेगी। कश्मीर घाटी में हाल ही में अलगाववादी नेताओं ने नियंत्रण रेखा पार करने की कोशिश की लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला क्यों नहीं दर्ज हुआ। आखिर यह देश कब तक राजनेताओं के दोगलेपन का खामियाजा भुगतता रहेगा? आखिर कब तक?

Saturday, July 26, 2008

सेक्स बनाम संचार क्रांति भाग-1


पहले मै आपको एक किस्सा सुनाता हूं। आज से करीब पंद्रह साल पुरानी बात है। टीवी पर उन दिनों परिवार नियोजन का एक विज्ञापन आता था। तब हमारे यहां पूरे परिवार के साथ टीवी देखने का चलन था। जैसे ही वह विज्ञापन आने को होता, मेरे दादा जी मुझे पानी लाने के बहाने कमरे से बाहर भेज देते। मुझे ताज्जुब होता कि दादा जी को रोज एक निश्चित समय पर ही प्यास क्यों लगती है। बाद में मुझे अपने दोस्तों से पता चला कि उस समय परिवार नियोजन का विज्ञापन आता था। लेकिन अब यह बीती बात हो गई है। अब तो दादा जी खुद विज्ञापन में बच्चों को समझाते नजर आ सकते हैं कि एड्स से बचाव के लिए सुरक्षित सेक्स कितना जरूरी है। फिल्म खुद्दार में करिश्मा कपूर पर 'सेक्सी, सेक्सी, सेक्सी मुझे लोग बोले' गाना फिल्माया गया तो हंगामा मच गया। गाने पर बैन लगा और 'सेक्सी-सेक्सी' की जगह 'बेबी-बेबी' करना पड़ा। डेढ़ दशक में ऐसा बदलाव आ गया कि अमिताभ की चीनी कम में आठ साल की एक बेबी का नाम 'सेक्सी' है। पर यह सिर्फ फिल्मों की बात नहीं है, संचार क्रांति के साथ-साथ पूरे समाज में सेक्स क्रांति आ चुकी है। सेक्स की खुले आम चर्चा कभी वर्जित रही होगी लेकिन आज सेक्स शायद हमारी दैनिक बातचीत का हिस्सा बन गया है। वह जमाना और रहा होगा, जब लोग डॉक्टर से भी सेक्स के बारे में संकोच के साथ बात करते थे। आज सब कुछ खुला और साफ है।

सेक्सोलॉजिस्ट डॉ पी के जायसवाल से एसएमएस द्वारा ऑनलाइन प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में पूछे गए इस सवाल को पढ़कर आप समझ सकते हैं कि सेक्स चर्चा अब कितनी ओपेन है। सवाल अंग्रेजी में था, मै यहां उसका शालीन भावार्थ दे रहा हूं-मैं 24 वर्षीय युवती हूं। मैं जानना चाहती हूं कि सेक्स क्षमता बढ़ाने के लिए क्या कोई दवा है? मेरे ब्वॉयफ्रेंड ने सब-कुछ आजमाकर देख लिया। मैं आपसे मदद चाहती हूं कि आप मुझे कुछ अच्छी टैबलेट्स बता दीजिए जिससे ।। धन्यवाद। पंद्रह साल पहले पोते को पानी लाने भेजकर परिवार नियोजन का विज्ञापन न देखने देने वाले दादा जी अब इस पोते या पोती का क्या करेंगे?

एक के साथ एक फ्री की तरह संचार क्रांति के साथ-साथ सेक्स क्रांति भी भारत को उपहार में मिली है। जो लड़के -लड़कियां आपस में सेक्स की चर्चा करने में संकोच करते थे वे बिना हिचक नॉनवेज जोक्स एसएमएस करने लगे। रही सही कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी। एसएमएस में तो थोड़ा संकोच भी रहता है, क्योंकि उससे आपकी पहचान जुड़ी होती है, लेकिन इंटरनेट पर आप पहचान छुपाकर आसानी से सेक्सी चैट कर सकते हैं। यहां न कोई पहचान है न कोई बंधन, इसलिए बातें भी खुल्लमखुल्ला होती हैं। पर जरूरी नहीं कि वहां जो जवाब दिए जा रहे हैं वे सही ही हैं। कई बार तो लड़के -लड़की बनकर और लड़कियां लड़का बनकर चैट करती हैं। पर ये फैंटेसी की दुनिया है और इसका निर्मल आनंद लेने वाले इस चक्कर में नहीं पड़ते कि जिसे वे लड़की समझ के बात कर रहे हैं, वह भी उन्हीं की तरह कोई लड़का है। वैसे इस दुविधा से मुक्त करने की सुविधा भी बाजार ने उपलब्ध करा दी है। रसीली बातें, मजेदार बातें शीर्षक से टेलीफ्रेंडशिप के तमाम विज्ञापन छपते हैं, जिनमें दिए गए नंबर पर डायल करके आप अपना मन और जेब दोनों हलके कर सकते हैं। अब जमाना विजुअल का है इसलिए सिर्फ आडियो से काम नहीं चल सकता, बाजार इस बात को अच्छी तरह जानता है। ब्लू फिल्मों का ट्रेंड तो काफी पहले से है। लेकिन ब्लू सीडी खरीदने के लिए आपको वीडियो पार्लर तक जाना होता था। इसमें भी संकोच होता था। संकोच सेक्स बाजार का सबसे बड़ा दुश्मन है, लिहाजा यह हर तरह का संकोच मिटा देना चाहता है। आपके छोटे से संकोच के खिलाफ अनगिनत पोर्न साइट्स हाजिर हैं। आप अपना कंप्यूटर ऑन कीजिए, सेक्सी-दुनिया आपका मनोरंजन करने को हाजिर है।

पर, जिस संस्कृति में पति-पत्नी अपने शयनकक्ष में भी दिया बुझाकर ही प्रेम करते थे, उसने क्या यूं ही सेक्स-बाजार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया? प्रतिरोध हुआ है पर बदलाव की लहर इतनी तेज थी कि तटबंध भी साथ में बह गए। ऊपर में जो मैने दादा जी वाला किस्सा बताया है, भारत में सेक्स-बूम की शुरूआत भी उसी दौर से होती है। जिस कपूर परिवार में लड़कियों को फिल्मों में काम करने की छूट नहीं थी, उसी की एक बेटी करिश्मा कपूर ने जब खुद्दार फिल्म में 'सेक्सी-सेक्सी मुझे लोग बोलें' गाया तो हड़कंप मच गया। गाने को बैन कर दिया गया तो इसे 'बेबी-बेबी मुझे लोग बोलें' करके रिलीज किया गया। हालांकि अभी भी सेक्सी-सेक्सी वाला वर्जन सुनने को मिलता रहता है। करिश्मा ने तो खुद को ही सेक्सी कहा था, लेकिन गो¨वदा तो उनसे भी दो कदम आगे बढ़कर अपनी पैंट और शर्ट को भी सेक्सी बताने लगे। इसके बाद सेक्स की जो आंधी चली उसमें प्रतिरोध के दरख्त उखड़ गए। चौदह साल पहले 'सेक्सी' को 'बेबी' बनना पड़ा था, आज बेबी को सेक्सी बना दिया गया। अमिताभ बच्चन की फिल्म चीनी कम में सात-आठ साल की एक बच्ची स्वीनी खैरा का नाम 'सेक्सी' रखा गया है। सेक्सी होना अब एक खिताब है। हाल ही में बिपाशा बसु को एशिया की सबसे सेक्सी महिला और शाहरुख को सबसे सेक्सी पुरुष का दर्जा मिला तो इनके भाव बढ़ गए। क्रमश:.....

Friday, March 7, 2008

बिहारी होने की इतनी बड़ी सजा


क्या किसी को बिहारी होने की इतनी बड़ी सजा दी जा सकती है..की उसके दोनों हाथ कट डाले जाय..आखिर राज ठाकरे के गुंडों को किसने ये हक़ दे दिया की वो किसी गरीब, बेबस और मजबूर को सिर्फ़ इस लिया सजा दे की वो बिहारी या भइया है..कहा है इस देश का कानून, बड़ी-बड़ी बात करने वाले ब्रस्त नेता...शायद सबकी आत्मा मर चुकी है...आइए जानते है उस बेबस, लाचार की दास्ताँ....

मैं रोज की तरह भुजा बेच कर रात को करीब 10 बजे फुटपाथ पर ही सोने चला गया। अभी मेरी आंख लगी ही थी कि मनसे के सैकड़ों कार्यकर्ता मुझे घेर कर पिटने लगे, मैं उनके पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाने लगा, बावजूद मेरी लात-घूसों से पिटाई होती रही और मैं बेहोश हो गया। दूसरे दिन जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को अस्पताल में पाया। मेरे दोनों हाथ मनसे कार्यकर्ताओं ने काट लिए थे और मेरे हाथों पर पट्टियां बंधी थीं। यह दर्दनाक दास्तां उस गरीब किशुन का है, जिसे बिहारी होने की इतनी बड़ी सजा दी गई है। पिछले दिनों राज ठाकरे व उसके समर्थकों द्वारा उत्तर भारतीयों पर बरपाए गए कहर का शिकार हुआ किशुन। मनसे कार्यकर्ताओं ने निर्ममतापूर्वक उसके दोनों हाथ काट कर दरिंदगी का परिचय दिया है। बिहार के सिवान जिले के रघुनाथपुर थाना क्षेत्र के दुदही गांव निवासी किशुन सिंह की गलती सिर्फ इतनी है कि वह पिछले 10 वर्र्षो से अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए महाराष्ट्र के पुणे में भुजा बेचता था। दिनभर भुजा बेच कर रात में फुटपाथ पर ही सो कर जिंदगी गुजारने वाले किशुन को क्या पता था कि उसे इसकी कीमत अपने दोनों हाथ गवां कर चुकानी पड़ेगी। घर लौटे किशुन के चेहरे पर मनसे कार्यकर्ताओं का खौफ इस कदर गहरा गया है कि आज भी वह किसी अंजान व्यक्ति को देख कर कांप जाता है।

सिवान के सदर अस्पताल में अपना इलाज करवा रहा किशुन को इस बात की चिंता सता रही है कि वह अपनी 12 वर्षीय बिटिया रंजीता का हाथ कैसे पीला करेगा। साथ ही उस आठ वर्षीय पुत्र और उसकी पत्‍‌नी का क्या होगा। इस परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा।

Thursday, February 21, 2008

भाई मैं मुंबई क्यों छोड़ूं ?


भाई चाहे राज ठाकरे कहें या उनके ताऊजी बाला साहेब मैं तो मुंबई से हटने के मूड में एकदम नहीं हूँ..... मैं ठहरा आख़िर बिहारी ...मैं ही नहीं मेरे सभी दोस्त, मेरा परिवार, सभी सदस्य ऐसा ही सोचते हैं...लेकिन हम सब और खास कर मैं किसी राज ठाकरे या उसके गुंड़ों से मार ही खाने के लिए तैयार हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरे पास कोई फौज नहीं है न ही कोई समर्थकों का गिरोह ही। मैं तो अभी तक यहाँ का मतदाता भी नहीं हुआ हूँ...बस रह रहा हूँ और आगे भी ऐसे ही रहने का मन है.....जो लोग मुंबई को अपना कहने का दंभ दिखा रहे हों...वो सुन लें... कभी भी अगर बीमार न रहा होऊँ तो 15 से 17 घंटे तक काम करता हूँ...इतनी ही मेहनत हर उत्तर भारतीय यहाँ करता है...वे या मैं किसी भी राज या नाराज ठाकरे या उनके मनसे के किसी गुंडों से कम महाराष्ट्र या मुंबई को नहीं चाहते हैं... अगर उनके पास कोई राज्य भक्ति को मापने का पैमाना हो तो वे नाप लें अगर उनसे कम राज्य भक्त निकला तो खुशी से वापस बिहार चला जाऊँगा....लेकिन अगर मेरे मन में कोई खोट नहीं है और मैं एक अच्छे शहरी की तरह मुंबई को अपना मानता हूँ तो मैं अपनी हिफाजत के लिए गोलबंद होने की आजादी रखता हूँ....अगर हमें खतरा लगा तो बाकी भी खतरे में ही रहेंगे...क्योंकि तोड़- फोड़ के लिए बहुत कम हिम्मत की जरूरत होती है....लूट और आगजनी से बड़ी कायरता कुछ नहीं हो सकती....रास्ते में जा रहे या किसी चौराहे पर किसी टैक्सी वाले को उतार कर पीटना और उसके रोजीके साधन को तोड़ देना तो और भी आसान है....मैं यह सब कायरता भरा कृत्य करने के लिए गोलबंद नहीं होना चाहूँगा बल्कि मैं ऐसे लोग का मुँह तोड़ने के लिए उठने की बात करूँगा जो हमें यहाँ से हटाने की सोच रहे हैं....मेरा दृढ़ मत है कि उत्तर भारत के ऐसे लोगों को आज नहीं तो कल एक साथ आना होगा .....उत्तर भारतीयों को एक उत्तर भारतीयों को सुरक्षा देने वाली मनसे के गुंड़ो को मुहतोड़ उत्तर देने वाली उत्तर सेना बनाने के वारे में सोचना ही पड़ेगा....जो लोग आज भी मुंबई में अपनी जातियों का संघ बना कर जी रहे हैं....मैं उन तमाम जातियों को अलग-अलग नहीं गिनाना चाहूँगा....उत्तर भारत से बहुत दूर आ कर भी आज भी बड़े संकीर्ण तरीके से अपने में ही सिमटे हुए लोगों से मैं कहना चाहूँगा कि ...आज जरूरत है सारे उत्तर भारतीयों को एक साथ आने की जिन्हें यहाँ भैया कह कर खदेड़ा जा रहा है....उनमें अमिताभ बच्चन भी हैं जो कि अभिनय करते हैं...और शत्रुघन सिन्हा भी, उनमें हसन कमाल भी हैं...जो कि लिखते हैं...और निरहू यादव भी, जो कि सब कुछ करते हैं.........उनमें राम संतलाल पाल भी हैं जो किताब बेंचते हैं और सुंदर लाल भी जो कि कारपेंटर हैं...जिनका दावा है कि हम काम न करें तो मुंबई के आधे घर बिना फर्नीचर के रह जाएँ......तो आज नही तो कल होगा.....संसाधनों के लिए दंगल होगा....और इसके लिए तैयार रहने को मैं कायरता नहीं मानता। ऐसा मैं अकेला ही नहीं सोच रहा ऐसे लाखों लोग हैं जो अपनी मुंबई को छोड़ने के बदले लड़ कर मरना बेहतर समझेंगे। आप भी तैयार रहिया ...

Saturday, February 9, 2008

राज का गुंडाराज,किसकी मुम्बई!


मुंबई में जो हो रहा है, उस पर कौन गर्व कर सकता है?

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ मोर्चा खोलकर और क्षेत्रीय संकीर्णता के जिन्न को बोतल से बाहर निकाल कर एक ऐसे विवाद को जन्म दिया है जो हमारे देश के संघीय ढांचे पर कुठाराघात करता है।
बिहारियों द्वारा छठ पर्व मनाए जाने को नाटक करार देने और बिग बी अमिताभ बच्चन के उत्तरप्रदेश प्रेम पर ताने कसने के राज के कृत्य की जितनी भी निंदा की जाए कम है। क्षेत्रीय संकीर्णता के इस विषधर को समय रहते कुचल डालने में ही देश का भला है अन्यथा इसका जहर फैलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
राज ठाकरे के ऐसा करने का मकसद मराठी भाषी वोट बैंक को अपनी पार्टी के साथ जोड़ना है, पर मराठी समाज उनके इस संकीर्ण नजरिये के समर्थन में उठ खड़ा हो इसकी संभावना नही है। राज के चाचा बालासाहेब दशकों से संकीर्ण महाराष्ट्रवाद की राजनीति करते रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता में उनकी पार्टी तभी भागीदार बन पाई जब उसने भाजपा सरीखी राष्ट्रीय पार्टी से हाथ मिलाया। वही शिवसेना को भी अपना रुख बदलना पड़ा..बालासाहेब की शिवसेना से अलग होकर राज ने अपनी जो नई राजनीतिक दुकान खोली है वह तमाम जतन करके भी न तो कोई साख बना पाई है और न जनाधार ही। शायद इसी से हताश हो कर राज ने उत्तर भारतीयों पर हमला बोला है जो भोथरा होने के साथ ही समाज को बांटने वाला भी है।
सुरक्षा संबंधी कारणों को छोड़ दें तो देश के नागरिक देश के किसी भी हिस्से में आने-जाने, रोजी-रोटी कमाने और अपनी रीतियों-परंपराओं का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह उनके संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हिस्सा है। मुंबई में बिहारियों द्वारा छठ पूजा करने को नाटक बताकर राज ने वहां रहने वाले बिहारियों के मूल अधिकारों को चुनौती दी है।
अमिताभ बच्चन के उत्तरप्रदेश प्रेम पर उनकी तानाकशी भी इसी दायरे में आती है। बिहारियों को मुंबई में छठ पूजा करने का उतना ही हक है जितना कि महाराष्ट्रियनों को देशभर में गणोशोत्सव मनाने का।

राज ठाकरे अगर वास्तव में मुंबई के विकास के प्रति उत्सुक हैं तो उन्हें अपना ध्यान छठ पूजा से हटाकर प्रशासन की खामियों पर केंद्रित करना होगा। पटना या गोरखपुर से आने वाली रेलगाड़ियों को तो नहीं रोका जा सकता है। अगर रोका जा सकता है तो वह है राजनीतिक भ्रष्टाचार का अजगर जिसने मुंबई के शरीर को तो चपेट में ले ही लिया है, अब उसकी आत्मा को भी डसने की फिराक में है। मगर राज तो गुंडागर्दी करके अपनी राजनितिक रोटी सकना चाहते है। जिस पर रोक लगना चाहेया

Tuesday, January 22, 2008

छः साल खौफ के साए में......


मुंबई की एक अदालत ने 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिलक़ीस बानो के साथ बलात्कार मामले में 11 लोगों को उम्र क़ैद की सुनाई , हालाँकि अपराध की जघन्‍यता के बरक्‍स यह सजा बहुत कम है, लेकिन फिर भी जहाँ न्‍याय की आस में अदालतों के चक्‍कर लगाते हुए पूरी उम्र गुजर जाती है, वहाँ यह अवधि और अंतत: बिलकिस के पक्ष में हुआ न्‍याय थोड़ी राहत और सुकून तो देता है और इस देश की न्‍याय-व्‍यवस्‍था में हल्‍का-सा यकीन भी। आज से छ: साल पहले गुजरात दंगों के समय 12 hinduo ने मिलकर नारे लगाते हुए एक औरत के साथ सामूहिक बलात्‍कार किया। उस समय उसके पेट में 6 माह का गर्भ था। वह अकेली नहीं थी, जिसके साथ धर्म के नाम पर यह दिल दहला देने वाला वाकया पेश आया। उसका पूरा परिवार था, जिसकी सभी औरतों के साथ बलात्‍कार हुआ और फिर सभी को मार डाला गया। एक अकेली वही बच गई, वह जीवट वाली औरत, जिसने हार नहीं मानी।

बिलकिस समेत परिवार की अन्‍य महिलाओं के साथ 12 लोगों ने सामूहिक बलात्‍कार किया और फिर उनकी हत्‍या कर दी। बिलकिस किसी तरह जान बचाकर भाग निकली और उसके बाद शुरू हुई यह लड़ाई, न्‍याय पाने का संघर्ष।
एक औरत, एक गरीब औरत और एक मुसलमान औरत होकर पिछड़े सामंती समाज के फिकरों, बलात्‍कार के अपमान को बर्दाश्‍त करना, लेकिन फिर भी गर्व के साथ मस्‍तक ऊँचा किए अपनी लड़ाई से हार न मानना, शायद यही कारण थे कि बिलकिस को अंतत: न्‍याय मिला। एक ऐसे देश में, जहाँ परिवारजन खुद बलात्‍कार का शिकार हुई अपनी बेटी को मौत के घाट उतार देते हैं, वहाँ बिलकिस के मानसिक संत्रास और उसके दु:खों की कल्‍पना की जा सकती है। एक ऐसा देश, ऐसा समाज, जहाँ ‘बैंडिट क्‍वीन’ जैसी बेहद दर्दनाक फिल्‍म के सबसे तकलीफदेह हिस्‍सों पर हॉल में बैठे लोग सीटी बजाते हैं, कनखियों से मुस्‍कुराते हैं। मेरे जेहन में आज भी उस फिल्‍म की स्‍मृति किसी गहरी पीड़ा के रूप में दर्ज है। इस दर्द को बिलकिस कुछ इन शब्‍दों में बयाँ करती है, ‘पिछले छः साल मैंने खौफ के साए में बिताए हैं। एक पनाहगाह से दूसरी पनाहगाह तक भागती फिरी हूँ, अपने बच्चों को अपने साथ लिए-लिए, उस नफरत से बचाने के लिए जो अभी भी मुझे पता है, कई लोगों के दिलोदिमाग में पैबस्त है। इस फैसले का मतलब नफरत का खात्मा नहीं है, लेकिन इससे यह भरोसा जागता है कि कहीं किसी तरह इन्साफ की जीत हो सकती है। यह फैसला सिर्फ़ मेरी नहीं उन सभी बेगुनाह मुसलमानों की जीत है, जिनका कत्ल कर दिया गया और उन सभी औरतों की भी, जिनकी देह इसलिए रौंद डाली गई कि मेरी तरह वे भी मुसलमान थीं।’ और यह सब उस धरती पर हुआ, जो गाँधी की विरासत से सींची गई है। और उस राम और उस धर्म के नाम पर हो रहा है, जिसके धर्मग्रंथ स्‍त्री के महिमामंडन और गौरव-गान से भरे हुए हैं। बिलकिस भंवरी देवी और मुख्‍तारन माई की याद दिलाती है, और इतिहास की उन तमाम स्त्रियों की, जिनमें सच बोलने और सच के लिए लड़ने का साहस है। जिनके फौलादी मन को पिघला सके, इतनी कूवत बड़े-से-बड़े जुल्‍म में भी नहीं है।

Thursday, January 3, 2008

उफ़! मायानगरी में ऐसी इंसानी दरिंदगी


...कोई मेरे पीठ को छू रहा था तो कोई शरीर में चिकोटी काट रहा था। मेरे कपड़े खिंचने के लिए दर्जनों हाथ हमारे करीब आते गए। भीड़ ने मेरी चचेरी ननद पर भी झपटना शुरू कर दिया। हम चिल्ला रहे थे, मेरे पति ने मुझे बचाने का प्रयास किया। उस समय भीड़ केवल चुपचाप खड़ी थी। मुझे लगता है कि मुंबई वासी मुसीबत में पड़े किसी व्यक्ति की मदद करने के इच्छुक नहीं होते। यह दर्दनाक बयान उस महिला के हैं, जो नववर्ष पर मायानगरी में इंसानी दरिंदगी की शिकार हुई। उन दो महिलाओं में से एक ने उस खतरनाक मंजर को बयान किया। किस कदर हुड़दंगियों की भीड़ ने उसे जानवरों की तरह नोचा और शर्मनाक हरकतें की। इस महिला के पति ने उस रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना का ब्यौरा दिया, जब करीब 50 लोग उसकी पत्नी और चचेरी बहन को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे। एक अखबार को को दिए साक्षात्कार में महिला ने बताया कि मैं इस डरावनी घटना से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हूं।

समाज का ये वो रूप है, जहाँ उपभोक्तावाद इंसान की भावनाओं से ऊपर निकल चुका है. कुछ इंसान उपभोक्तावाद की इस अंधी दौड़ में इतना तेज़ दौड़ रहे हैं कि उनको पता ही नही है कि क्या सही है और क्या ग़लत है. मुंबई जैसे महानगर,जिसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है और जहाँ पर आज लड़कियाँ भी लड़कों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर काम कर रही हैं, ऐसे में मुंबई में हुई ये घटना बताती है कि लड़कियों के लिए कुछ मुट्ठी भर लोगो कीं सोच आज भी क्या है. जो लोग ऐसी हरकतें करते हैं वो ये भूल जाते हैं कि उनके घर में भी माँ, बेटी और बहन हैं.