
...कोई मेरे पीठ को छू रहा था तो कोई शरीर में चिकोटी काट रहा था। मेरे कपड़े खिंचने के लिए दर्जनों हाथ हमारे करीब आते गए। भीड़ ने मेरी चचेरी ननद पर भी झपटना शुरू कर दिया। हम चिल्ला रहे थे, मेरे पति ने मुझे बचाने का प्रयास किया। उस समय भीड़ केवल चुपचाप खड़ी थी। मुझे लगता है कि मुंबई वासी मुसीबत में पड़े किसी व्यक्ति की मदद करने के इच्छुक नहीं होते। यह दर्दनाक बयान उस महिला के हैं, जो नववर्ष पर मायानगरी में इंसानी दरिंदगी की शिकार हुई। उन दो महिलाओं में से एक ने उस खतरनाक मंजर को बयान किया। किस कदर हुड़दंगियों की भीड़ ने उसे जानवरों की तरह नोचा और शर्मनाक हरकतें की। इस महिला के पति ने उस रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना का ब्यौरा दिया, जब करीब 50 लोग उसकी पत्नी और चचेरी बहन को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे। एक अखबार को को दिए साक्षात्कार में महिला ने बताया कि मैं इस डरावनी घटना से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हूं।
समाज का ये वो रूप है, जहाँ उपभोक्तावाद इंसान की भावनाओं से ऊपर निकल चुका है. कुछ इंसान उपभोक्तावाद की इस अंधी दौड़ में इतना तेज़ दौड़ रहे हैं कि उनको पता ही नही है कि क्या सही है और क्या ग़लत है. मुंबई जैसे महानगर,जिसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है और जहाँ पर आज लड़कियाँ भी लड़कों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर काम कर रही हैं, ऐसे में मुंबई में हुई ये घटना बताती है कि लड़कियों के लिए कुछ मुट्ठी भर लोगो कीं सोच आज भी क्या है. जो लोग ऐसी हरकतें करते हैं वो ये भूल जाते हैं कि उनके घर में भी माँ, बेटी और बहन हैं.
1 comment:
maichal ji apne bilkul thik likha hai.mai es bat se sahmat hun.
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