समलैंगिकता कानून पर कोर्ट में किरकिरी का सामना कर रही सरकार को आखिरकार अपने ही मंत्री के खिलाफ हाईकोर्ट में बोलना पड़ा।सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास के रजामंद वयस्कों में समलैंगिक यौन संबंध की अनुमति संबंधी दृष्टिकोण को खारिज करने को कहा है।यानी सरकार के इस केंद्रीय मंत्री का बयान कोई मायने नहीं रखता। जैसा कि पिछले दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय ने समलैंगिक यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर निकालने की वकालत की थी, मगर गृह मंत्रालय ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ऐसे कृत्यों के बारे में दंड के प्रावधानों को हटाया नहीं जा सकता। परिणाम स्वरूप दिल्ली हाईकोर्ट ने भी समलैंगिक यौन संबंध को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी थी।अब सवाल यह उठता है कि इस मर्ज का इलाज क्या है। विश्व में किसी भी देश से ज्यादा एड्स रोगी भारत में है। मेरे विचार से समाज में सेक्स से जुड़े विभिन्न पहलुओं को जब तक स्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक इस मर्ज का कोई इलाज नहीं है। आखिर समलैंगिक यौन संबंध जिसे हमारे कानून ने अप्राकृतिक यौन संबंधों की श्रेणी में रखा है, का कितना औचित्य है। चोरी छिपे ही सही, मगर समलैंगिक यौन संबंध तो तकरीबन हर जगह है।
Monday, September 29, 2008
Friday, September 26, 2008
आतंकियों का एक और प्रवक्ता अर्जुन सिंह
यह लो भाइयों, आतंकियों का एक और प्रवक्ता सामने आया। यह प्रवक्ता है हमारे देश का बुजुर्ग केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह।अब तो लगता है देश के गद्दारों और अमन के दुश्मनों पर लगाम लगना बहुत ही मुश्किल है। इस केंद्रीय मंत्री ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के दिल्ली बम विस्फोटों के मामले में आरोपी दो छात्रों को कानूनी सहायता देने के फैसले का खुलकर समर्थन किया है। मामला साफ है, सरकारी पैसे का खुलेआम दुरुपयोग, वह भी अमन के दुश्मनों और देश को तबाह करने का मंसूबा रखने वाले आतंकियों के लिए।जामिया विश्वविद्यालय का कुलपति प्रो. मुशरुल हसन ने कल ही एक राष्ट्र विरोधी और बेहद आपत्तिजनक फैसला लेते हुए कहा था कि वह पकड़े गए आतंकियों को कानूनी सहायता देगा। कहां हम सरकार से अपेक्षा कर रहे थे कि वो इस आपत्तिजनक फैसले पर विरोध जताते हुए इस संदिग्ध कुलपति से इस्तीफा ले लेगी, मगर आश्चर्यजनक तरीके से सरकार के एक जिम्मेवार मंत्री ने राष्ट्र विरोधियों का समर्थन कर दिया। तो क्या दिल्ली पुलिस के उस जाबांज सिपाही मोहन चंद्र शर्मा की शहादत को कोई मोल नहीं है, इस निकम्मी सरकार के लिए। यह चिंतनीय विषय है।फिर यह सरकार क्यों बेवजह मोहन चंद्र शर्मा जैसे लोगों की हत्याएं करवा रही है। अगर आतंकियों से इतना ही प्यार है अर्जुन सिंह और मुशरुल हसन को तो देश को खुल कर क्यों नहीं बताते। फिर देखते ऐसे लोगों को जनता किस तरह सबक सिखाती।
Tuesday, September 23, 2008
..तो दस बार सोचेंगे विदेशी निवेशक
भारतीय उद्योग जगत को शर्मसार कर देने वाली एक और खबर। सिंगूर में टाटा प्लांट के गार्डो पर लोहे की राड से हमला किया गया। वह भी ऐसे समय में जब कि टाटा दु:खी मन से अपने नैनो परियोजना का काम चुपचाप स्थानांतरित कर रही है। इससे ठीक एक दिन पहले दिल्ली से सटे औद्योगिक नगर ग्रेटर नोएडा में ग्रेजियानो ट्रांसमिशन इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी के कुछ गुंडे टाइप कर्मचारियों ने कंपनी के सीईओ को लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला। इस दोनों घटनाओं में काफी समानता है। ग्रेटर नोएडा की घटना तो स्थानीय पुलिस की लापरवाही दर्शाती है वहींसिंगूर में पिछले एक साल से जो हो रहा है वह विशुद्ध रूप से राजनीति का एक गंदा स्वरूप है।
बहरहाल, ये घटनाएं देश की उद्योग नीति की कमजोरियों को दर्शाती है तथा ऐसी घटनाएं विदेशी निवेशकों के समक्ष भारत की छवि को धूमिल ही करेंगी। खास कर देश के श्रम मंत्री ऑस्कर फर्र्नाडिस का वह बयान को विदेशी निवेशकों को दस बार सोचने पर मजबूर कर देगा, जिसमें उन्होंने सीईओ की हत्या के बाद कहा था कि यह हत्या कंपनियों के प्रबंधकों को एक चेतावनी है। मतलब साफ है-कंपनिया निकम्मे कर्मचारियों को भी पाल कर रखे। उन्हें निकालेंगे को यही होगा। वाह रे हमारे देश के श्रम मंत्री।
बहरहाल, ये घटनाएं देश की उद्योग नीति की कमजोरियों को दर्शाती है तथा ऐसी घटनाएं विदेशी निवेशकों के समक्ष भारत की छवि को धूमिल ही करेंगी। खास कर देश के श्रम मंत्री ऑस्कर फर्र्नाडिस का वह बयान को विदेशी निवेशकों को दस बार सोचने पर मजबूर कर देगा, जिसमें उन्होंने सीईओ की हत्या के बाद कहा था कि यह हत्या कंपनियों के प्रबंधकों को एक चेतावनी है। मतलब साफ है-कंपनिया निकम्मे कर्मचारियों को भी पाल कर रखे। उन्हें निकालेंगे को यही होगा। वाह रे हमारे देश के श्रम मंत्री।
Monday, September 22, 2008
शर्मसार हुआ भारतीय उद्योग जगत
भारतीय उद्योग जगत को शर्मसार कर देने वाली एक घटना घटी। ग्रेजियानो ट्रांसमिशन इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी के कुछ गुंडे टाइप कर्मचारियों ने कंपनी के सीईओ को लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला। इस घटना ने भारतीय उद्योग जगत का चेहरा दुनिया में शर्मसार किया है। अगर किसी कारखाने में व्यवस्था और कामगारों के बीच हाथापायी भी हो जाए तो ये उस देश की उद्योग नीति की कमजोरी को उजागर कर देती है परन्तु यहां तो उन गुंडे टाइप कर्मचारियों ने अपने ही रोजगारदाता कंपनी के सीईओ को पीट-पीट कर मार डाला , इस घटना से विश्व में भारतीय उद्योग की निंदा जरूर होगी। अब कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत में उद्योग स्थापित करने से पहले जरूर सोचेगी और शायद हिचकिचाए भी। इससे पहले सिंगुर-विवाद ने भी एक बहुत ग़लत प्रभाव छोड़ा था और अब ये ज्वलंत मामला। क्या हमारे देश में उद्योगों के लिए कोई व्यवथित नियम नहीं है कि आम जनता को हर समय नियम और कानून अपने हाथों में लेना पड़ता है। सीईओ एलके.चौधरी ने तो बस अपने शीर्ष प्रशासन के हुक्म पर अमल किया होगा और उसे अपनी जान से हाथ धोनी पडी। आख़िर कामगारों के अत्यधिक गुस्से का कारण इतना आसान नहीं हो सकता, कहीं न कहीं प्रशासन भी गुनाहगार है । उधर, कंपनी के प्रॉडक्शन सुपरवाइज़र राजपाल ने आरोप लगाया कि सूचना के दो घंटे बाद बिसरख पुलिस मौके पर पहुंची। इतना ही नहीं , बिसरख थाना इंचार्ज जगमोहन शर्मा सीनियर अफसरों को इस घटना को मामूली मारपीट बताते रहे और उन्हें कई घंटे तक अंधेरे में रखा। इस घटना का एक पहलू और भी है, जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, क्या इन नीजी कंपनियों के लिए कोई पक्के नियम और क़ानून नहीं है सरकार की ओर से जो ये अपनी मनमानी करते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो ये सीईओ की मौत सरकार को एक चेतावनी है कि नीजी उद्योगों में हस्तक्षेप करे। आख़िर उस मुनाफा का किसी को क्या लाभ जिसमें जान ही चली जाए। साथ ही साथ इस घटना की कड़ी निंदा होनी चाहिए और दोषी गुंडे टाइप कर्मचारियों को उचित दंड भी मिलना चाहिए जिससे उद्योग जगत के अनुशासन तोड़ने वालों को भी सरकार की ओर से चेतावनी मिल सके।
Saturday, September 20, 2008
क्या प्यार करना बड़ा गुनाह है...
क्या प्यार करना इतना बड़ा गुनाह है॥कि उसके बदले कोई अपना ही उसे निर्ममता पूर्वक मार डाले? बचपन से ही तो हर बच्चों को प्रेम करना सिखाया जाता है, जब वे बड़े होकर उसी प्यार के साथ जीने का निर्णय लेना चाहते है तो फिर हमारा समाज उसका दुश्मन क्यों हो जाता है? ग्रेटर नोएडा के एक गांव की घटना इसकी मिसाल है। वहां 18 साल की एक लड़की और उसके प्रेमी को इसलिए मार डाला गया, क्योंकि वे एक ही जाति के होने के बावजूद विभिन्न आयवर्ग में आते थे। एक परिवार रईस, दूसरा बेहद गरीब। दोनों परिवारों को अपने युवा होते बच्चों का प्रेम बर्दाश्त नहीं हुआ। इस पर ऐसा वहशीपन दिखाया गया कि दोनों को न सिर्फ पीट-पीटकर मार डाला गया, बल्कि उन्हें आग के हवाले भी किया गया। हमारे देश में यह पहली घटना नहीं है। जाति और समाज के नाम पर झूठी शान कायम रखने की जिद के चलते कितने ही प्रेमियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। कई बार तो बाकायदा पंचायत बुलाकर युवा प्रेमियों की हत्या का फरमान जारी किया जाता रहा है। ऐसी घटनाएं गांवों में ही ज्यादा हो रही हैं। अंतर्जातीय शादियों को लेकर शहरों में तो नजरिया काफी बदला है, वहां अब अभिभावक अपने बच्चों के ऐसे प्रेम और विवाह के प्रति उदार हुए हैं, पर ग्रामीण इलाकों में हालात पहले की तरह ही हैं। वहां सामंतवादी रूढि़यां अभी भी जस की तस कायम हैं। वहां संपन्नता, तो पहुंची है पर समझ की वह रोशनी नहीं पहुंची, जो वहां के समाज को ऐसे मामलों में उदार बनाती है। वहां आज भी अलग जाति-वर्ग के युवाओं के प्रेम को अत्यधिक चिढ़ के साथ देखा जाता है और उसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया जाता है। झूठी प्रतिष्ठा का सवाल न जाने और कितने प्रेमियों की जान ले लेगा। आखिर कब बदलेगी ऐसी प्रवृति? कब रुकेगा यह वहशीपन?
Tuesday, September 16, 2008
यह गृहमंत्री नपुंसक है
वाराणसी, मुंबई, बेंगलूर, अजमेर, जयपुर, अहमदाबाद और अब देश की राजधानी दिल्ली। आतंक के शिकार होने वाले शहरों और बेगुनाहों के कत्ल की सूची लंबी होती जा रही है। आतंकी जब चाहे, जहां चाहे आम लोगों को निशाना बनाते जा रहे है और इस देश का नपुंसक गृहमंत्री हर आतंकी वारदात के बाद एक ही रटा रटाया बयान देता है-कानून के अनुसार कड़ी कार्यवाई होगी। आखिर हम कब तक ऐसे नपुंसक शासकों के भरोसे मरते रहेंगे। 10 जनपथ के इन पालतू नेताओं के हाथों क्या देश सुरक्षित है। कत्तई नहीं। इस नपुंसक गृहमंत्री के चार साल के शासन में आज तक कोई ऐसी कार्ययोजना नहीं बनी, जिससे आतंकियों में खौफ पैदा हो सके। हां, फैशन परेड में यह नेता सबसे टाप पर है। रोजाना नए-नए सूट पहनना, जुते बदलना और महंगे इंर्पोटेड परफ्यूम का इस्तेमाल करना इसका पसंदीदा कार्य है। इसे क्यू फिक्र होने लगी इस देश की। इसका जीता-जागता नमूना मिला शनिवार को राजधानी में हो रहे सीरीयल ब्लास्ट के मौके पर, जब शाम 6 बजे के बाद राजधानी में आतंकियों के हमले से दिल्ली थर्रा रहा था और बेकसूर मर रहे थे, मगर हमारे माननीय गृहमंत्री अपने सफारी शूट बदलने में मशगूल थे। वाह रे देश के गृहमंत्री..अरे अब भी कुछ शर्म बचा है तो अपने मंत्रालय जाकर आतंकियों की फाइलें निकलवाओं और मीडिया में बयान न देकर उस पर वास्तविक कार्यवाई करों।
Monday, September 15, 2008
किसके बाप की है मुंबई!
किसके बाप की है मुंबई! राज ठाकरे, उसके ताऊ बाल ठाकरे या वहां की शिखंडी सरकार के मुखिया विलास राव देशमुख या आरआर पाटिल जैसे हिजड़े नेताओं की। इन सब के बीच एक और नाम आता है। मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त [कानून व्यवस्था] के एल प्रसाद का, जो एक बेदाग छवि के आईपीएस जाने जाते है। आखिर ऐसा क्या कह दिया के एल प्रसाद ने जो अपनी बिल में ही भौंकने वाले राज ठाकरे और उसके ताऊ बाल ठाकरे सरीखे चूहों के साथ-साथ महाराष्ट्र के शिखंडी सरकार के उप मुख्यमंत्री आरआर पाटिल को भी चुभने लगी। क्या राज्य में कुख्यात महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की गुण्डागर्दी के खिलाफ के एल प्रसाद को नहीं बोलना चाहिए? क्या उन्हें भी हिजड़े नेताओं की तरह मनसे के गुण्डा प्रमुख राज ठाकरे को खुले साड की तरह छोड़ देना चाहिए। ताकि भाषा और क्षेत्रवाद का आतंक फैला कर ठाकरे खानदान राजनीतिक दुकानदारी चलाता रहे। पूरे देश में आतंकियों पर लगाम लगाने की बात कही जा रही है, फिर महाराष्ट्र के इन कथित आतंकवादियों पर नियंत्रण क्यों नहीं हो रहा है। क्या इस लिए कि आर आर पाटिल जैसे नेता इस राज्य में उप मुख्यमंत्री है और राज ठाकरे जैसे आतंकियों का संरक्षक बन कर बैठे है ताकि अगले चुनाव में भाषा का विष पिला कर कुर्सी से चिपके रह सके। मगर यह बेहद खतरनाक है। शिव सेना प्रमुख अपने अखबार के संपादकीय में लिखते है कि मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त के एल प्रसाद की मुंबई पर की गई टिप्पणी अमर्यादित है। वाह रे बुढ़ऊ ठाकरे..अब आप जैसे जहरीले और उदंड राज नेता के एल प्रसाद जैसे बेदाग अधिकारी को मर्यादा सिखाएंगे। महाराष्ट्र गुण्डा सेना का प्रमुख राज ठाकरे के एल प्रसाद को वर्दी उतार कर बयान देने की चेतावनी देता है और सरकार मौन रह कर आतंकियों को प्रोत्साहित करती है।
Tuesday, September 9, 2008
10 सितंबर, काला बुधवार: बेकार आशंका
लार्ज हेड्रोन कोलिडर [एलएचसी] जी हां, यही नाम है उस मशीन का, जिसके बारे में रोजाना टीवी चैनल वाले लोगों को डरा रहे है। यह जिनेवा स्थित परमाणु शोध प्रयोगशाला सर्न में रखी गई है, और आज 10 सितंबर, यानी बुधवार को यहां दुनियाभर के लगभग 2500 वैज्ञानिक जुटेंगे और धरती के 330 फुट नीचे इस मशीन के जरिए भौतिकी का सबसे बड़ा प्रयोग करेंगे।चौदह साल के लंबे इंतजार के बाद पृथ्वी की अनेक गुत्थियां सुलझने को हैं और वैज्ञानिकों की मानें तो वह अब तक के सबसे विशाल परीक्षण के जरिए ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य का पता लगाने की कोशिश करेंगे। टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में टीवी चैनल वाले बेतुकी और बेकार आशंकाओं को बता कर लोगों को गुमराह कर रहे है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक महाविस्फोट से हुई थी और वैज्ञानिक 27 किलोमीटर लंबी इस मशीन से विस्फोट कर एक बार फिर वैसी ही परिस्थितियां पैदा करेंगे, ताकि दुनिया के निर्माण के रहस्य का पता लगाया जा सके। प्रयोग करने वाले वैज्ञानिक किसी भी ऐसी आशंकाओं को निराधार बता रहे हैं, जो अफवाहें उड़ाई जा रहीं है। प्रयोग से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी का कहना है कि एलएचसी से धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा कोई खतरा होता तो वैज्ञानिक यह प्रयोग करने का जोखिम नहीं उठाते।उन्होंने कहा कि ब्रह्मांड की उम्र लगभग 14 अरब वर्ष और धरती की उत्पत्ति की उम्र करीब साढ़े चार अरब वर्ष मानी जाती है। तब से लेकर अब तक ब्रह्मांड में न जाने कितनी टक्कर हुई हैं। लेकिन धरती के अस्तित्व पर कभी कोई संकट नहीं आया।एलएचसी से परखनली में छोटे कणों में ऊर्जा पैदा की जाएगी। इससे प्रोटोन एक दूसरे से टकराएंगे। इस दौरान ऊर्जा का स्तर सात गुना ज्यादा होगा। यह अब तक का सबसे ज्यादा हासिल किया जाने वाला स्तर होगा। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस परीक्षण के जरिए भौतिक विज्ञान के कुछ बड़े सवालों के जवाब ढूं़ढे़ जा सकेंगे, जैसे- ब्रह्मांड जैसा दिखाई देता है, वैसा क्यों है और द्रव्य गुरुत्वाकर्षण तथा रहस्यमयी डार्क मैटर को कैसे स्पष्ट किया जा सकता है आदि। इस परीक्षण के पीछे डाक्टर लिन इवांस हैं, जो एक खनिक के पुत्र हैं। उनका कहना है कि विज्ञान के प्रति वे तब आकर्षित हुए जब वह कम उम्र के ही थे। एक अन्य वैज्ञानिक मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन कोक्स हैं।
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