समलैंगिकता कानून पर कोर्ट में किरकिरी का सामना कर रही सरकार को आखिरकार अपने ही मंत्री के खिलाफ हाईकोर्ट में बोलना पड़ा।सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास के रजामंद वयस्कों में समलैंगिक यौन संबंध की अनुमति संबंधी दृष्टिकोण को खारिज करने को कहा है।यानी सरकार के इस केंद्रीय मंत्री का बयान कोई मायने नहीं रखता। जैसा कि पिछले दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय ने समलैंगिक यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर निकालने की वकालत की थी, मगर गृह मंत्रालय ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ऐसे कृत्यों के बारे में दंड के प्रावधानों को हटाया नहीं जा सकता। परिणाम स्वरूप दिल्ली हाईकोर्ट ने भी समलैंगिक यौन संबंध को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी थी।अब सवाल यह उठता है कि इस मर्ज का इलाज क्या है। विश्व में किसी भी देश से ज्यादा एड्स रोगी भारत में है। मेरे विचार से समाज में सेक्स से जुड़े विभिन्न पहलुओं को जब तक स्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक इस मर्ज का कोई इलाज नहीं है। आखिर समलैंगिक यौन संबंध जिसे हमारे कानून ने अप्राकृतिक यौन संबंधों की श्रेणी में रखा है, का कितना औचित्य है। चोरी छिपे ही सही, मगर समलैंगिक यौन संबंध तो तकरीबन हर जगह है।
Monday, September 29, 2008
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1 comment:
जिस की मर्जी जो करे सारे हैं आजाद
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