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Tuesday, October 21, 2008

नई दुनिया..एक शर्मनाक पत्रकारिता



नई दुनिया..दिल्ली की नई सुबह अब नई दुनिया अखबार के साथ। जी हां, बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर के साथ दिल्ली में एक कथित बड़ा अखबार शुरू किया गया। दिल्ली में इस अखबार का जिम्मा संभाला एक भारी भरकम संपादक ने, नाम है आलोक मेहता। टीम भी बनी भारी भरकम नामी गिरामी पत्रकारों की, जो अपने आप में हर क्षेत्र के विशेषज्ञ माने जाते है। विगत 2 अक्टूबर को इसका बड़े धूमधाम से प्रकाशन शुरू हुआ, लगा की वरिष्ठ पत्रकारों की टीम कुछ अच्छा करेगी, मगर इस अखबार की तो जैसे हवा ही निकल गई, जब बजरंग दल के विनय कटियार का 19 अक्टूबर को साक्षात्कार छपने के बाद संपादक को उनका पत्र मिला। कम से कम इतने बड़े संपादक से तो यह आशा कत्तई नहीं थी कि वे अपने ही पत्रकार की रिपोर्ट के खिलाफ विनय कटियार का बयान प्रकाशित करें। मुझे शर्म आती है ऐसी पत्रकारिता पर। अब प्रश्न यह उठता है कि इस अखबार का कंटेंट संपादक या पत्रकार देंगे या छजवानी बंधु?

4 comments:

Anil Pusadkar said...

बस नाम नया है बाकी सब पुराना है।

Unknown said...

क्या भाषा सिंह ने साक्षात्कार टेप नहीं किया था ? विनय कटियार का पत्र छापना पत्रकारिता की ईमानदारी है, किंतु उसके साथ सम्पादक की टिप्पणी भी होनी चाहिए थी. पत्रकारिता में कोई पत्र निजी और सीक्रेट नहीं होता.

Rajak Haidar said...

कभी-कभी जोश-जोश में होश खो जाते हैं। वैसे भाषा सिंह जैसी पत्रकार से पाठकों को यह उम्मीद तो नहीं थी। अब तो लगता है आलोक मेहता जैसे बड़े नाम भी नई दिल्ली में नई दुनिया नहीं बसा पाएंगे।

Anonymous said...

किस्सा नया हो या पुराना बली का बकरा पत्रकार ही बनता आया है |
दूसरों के लिए आवाज बुलंद करने वाला अनपे लिए अब तक लडना सीखा ही नही | पत्रकार का शौषण सबसे अधिक समाचार पत्र ही कर रहे है दूर दराज के गांव में काम करने वाले एक पत्रकार को समाचर पत्र 300 से 500 तक ही देता है और यदी कोई मुसिबत आती है तो पत्रकार का साथ छोड दिया जाता है|
पत्रकार जब तक मोटी कमाई करने वाले समाचार पत्रो के विरुद्ध आवाज बुलंद नही करता यह सिलसिला जारी रहेगा| दूसरों का सहारा खुद बेचारा, बेसहारा |