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Wednesday, October 29, 2008

चलों चलें गृहयुद्ध की ओर


* तमाम बिहारियों से आह्वान है कि वे निकम्मे व नपुंसक मराठियों का संहार करने के लिए तैयार रहे।
* अब बोलों हिजड़े पाटिल-हत्या के बदले हत्या।
* इतिहास गवाह है जब-जब बिहारियों पर अत्याचार हुआ है, हथियार उठाने के लिए मजबूर हुए है।
* उठों..ठाकरे और पाटिल जैसे मराठियों से इस देश को मुक्त करो। मिटा दो ऐसे अतितायियों का नामोनिशान।
* सभी उत्तर भारतीय समुदाय मराठी और महाराष्ट्र का बहिष्कार करो।
* महाराष्ट्र के सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारी वापस आएं।
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भाइयों, ये अंश है आज के उन ब्लागरों के जो मुंबई व आसपास के हिस्सों में उत्तर भारतीयों पर बरपाये जा रहे कहर से व्यथित है। इनका गुस्सा लाजमी भी है। परन्तु क्या हम अब एक नए गृह युद्ध की तरफ नहीं बढ़ रहे है? क्या केंद्र की निकम्मी सरकार वाकई देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकना चाहती है। अगर कांग्रेस इसी तरह गंदी राजनीति की चालें चलती रहींतो देश और समाज को तहस नहस होने से कोई नहीं बचा सकता। हमारे ब्लागर भाईयों ने जो विचार व्यक्त किए, क्या वो उचित है, अगर नहीं तो आखिर इसका समाधान क्या है?

1 comment:

वेद रत्न शुक्ल said...

समाधान सरकार की सख्ती है। सरकार चाहे तो राज ठाकरे जैसे जनाधारविहीन नेता को दो मिनट में सबक सिखा सकती है। आखिर राज ठाकरे है कौन? उसके सारे लोग मिलकर जितना वोट पाते हैं उससे ज्यादा हमारे यहां का एक सांसद पाता है। यह तो सरकार यानि की कांग्रेस की गलती है कि वो राज ठाकरे को इतनी तरजीह देती है। ध्यान दीजिए कि एक समय हम लोग भी भावना में बहकर बाल ठाकरे की प्रशंसा किया करते थे, बिना ये सोचे कि उसकी बुनियाद ही मराठी और गैर मराठीवाद जैसे देश तोड़ू अभियान को लेकर बनी है। राम जन्मभूमि आन्दोलन की बहती गंगा में ठाकरे परिवार ने हाथ धोकर आज देश को ये सिला दिया है। अपने-अपने नेता पर दबाव डालना होगा ताकि वो दिल्ली में हंगामा करें। आखिर लालू, पासवान का इस्तीफा क्यों नहीं? कब तक सिर्फ बातों से काम चलाते रहेंगे।