Wednesday, December 31, 2008
Tuesday, December 16, 2008
मुसलमान बनों वरना इज्जत तार-तार कर देंगे.. देश भी छोड़ो
Wednesday, December 10, 2008
ये कैसा प्यार है चांद मुहम्मद
Sunday, December 7, 2008
जरा याद उन्हें भी कर लो जिनकी लाश भी घर न आयी
Saturday, November 29, 2008
शर्म करो पाटिल आर.आर. पाटिल
शत शत नमन..जाबांज शहीदों
..कहां है वे हिजड़े नेता
Friday, November 28, 2008
गोलियों की बौछार में वो अपनी प्रेमिका को निकाल लाया
Thursday, November 27, 2008
सलाम सतेंद्र दूबे...सलाम सतेंद्र दूबे
Thursday, November 20, 2008
मुंबई एटीएस ने साध्वी से पूछा- क्या तुम कुंवारी हो?
Wednesday, November 12, 2008
महेन्द्र सिंह धोनी, पिस्टल और चरित्र प्रमाण पत्र
माना कि कानून सबके लिए बराबर होता है। धोनी ने भी सभी प्रक्रियाओं का पालन किया, पर उसे निपटाने में प्रशासन इतने नौटंकी क्यों कर रहा है? जबकि नेता-मंत्री-अधिकारी के आवेदनों पर पूरा महकमा कुत्ते की तरह दौड़ता रहता है।
जहां तक प्रक्रिया की बात है तो एक ही राज्य में अलग-अलग कानून चल रहे। रांची में कमिश्नर ने लाइसेंस के लिए स्पेशल ब्रांच और सीआईडी रिपोर्ट जरूरी कर दी है। जबकि दूसरी जगहों पर ऐसा नहीं है। वैसे भी कमिश्नर को यह अधिकार है कि वह जिसके चरित्र से संतुष्ट हों, उन्हें हथियार का लाइसेंस निर्गत कर सकते हैं। अब धोनी के चरित्र को तो बताने की जरूरत नहीं। पर, नेता-मंत्रियों के जो लाइसेंस जारी हुए, वह भी एक नहीं तीन-तीन कैसे? कई नेता और मंत्री ऐसे हैं, जिनके खिलाफ थानों में आपराधिक मामले दर्ज है। कुछ मंत्री के खिलाफ तो चार्ज शीट तक कोर्ट में दाखिल किये गये हैं, फिर उन्हें हथियारों के लाइसेंस कैसे दिए गए।
एक नजर हमारे माननीय मंत्रियों के चरित्र पर।
शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की- एक रायफल, एक बंदूक, एक पिस्टल (दो आपराधिक मामले दर्ज)
ग्रामीण विकास मंत्री एनोस एक्का- एक बंदूक, एक रायफल(दो आपराधिक मामले दर्ज), सिमडेगा से जारी हथियार अलग
पूर्व मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी : एक रायफल, एक पिस्टल
पूर्व गृह मंत्री सुदेश महतो: एक रायफल, एक पिस्टल
मंत्री कमलेश सिंह : एक रिवाल्वर, एक रायफल(एक आपराधिक मामला दर्ज)
पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी: एक बंदूक
जेएमएम नेता पंकज सिंह: एक रिवाल्वर, एक बंदूक(एक मामला)
झामुमो नेता नवीन चंचल : एक रिवाल्वर(एक मामला)
रामचंद्र चंद्रवंशी : एक बंदूक, एक रिवाल्वर, एक रायफल (दो मामले दर्ज)
थियोडर किड़ो : एक बंदूक
बसंत कुमार लोंगा : एक बंदूक(एक मामला)
झामुमो नेता शिवलाल महतो : एक रिवाल्वर
कांग्रेस नेता कुमार महेश सिंह : एक रिवाल्वर
योगेन्द्र साव : एक रिवाल्वर
विधायक प्रकाश राम: एक रायफल एवं बंदूक (एक मामला),
विधायक रामचंद्र सिंह : एक रिवाल्वर(एक मामला)
एमएलए जर्नादन पासवान: एक रायफल, एक बंदूक(दो मामले)
एमएलए सत्यानंद भोक्ता: एक बंदूक(एक मामला)
इनके चरित्र का क्या होगा? झारखंड प्रशासन बताएगा कि इनका चरित्र-प्रमाण किस उल्लू ने देखा?
Wednesday, November 5, 2008
मनसे की गुण्डागर्दी जारी, फिर मारा गया यूपी का एक भइया
Thursday, October 30, 2008
अभिनव भारत राष्ट्रवादी संगठन है!
आज से करीब दो साल पहले इस संगठन की स्थापना की गई। वैसे तो 'अभिनव भारत' काफी पुराना संगठन है, लेकिन इसका मौजूदा रूप महज दो साल पुराना है। संगठन की कमान गोपाल गोडसे की बेटी और नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी के हाथों में है। हिमानी विनायक दामोदर सावरकर की बहू भी है। मूल रूप से एक शताब्दी पहले सावरकर द्वारा ही 'अभिनव भारत' की स्थापना की गई थी। संगठन ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए बनाया गया था। हिमानी बताती है कि हमने इस संगठन को पुनर्जीवित किया। पिछले कुछ दशको मे हिंदुओ के खिलाफ हो रहे अत्याचार को देखते हुए हमने इसकी जरूरत महसूस की थी। इसके बाद समान विचारधारा वाले कुछ लोग साथ आए और हमनें 2006 में इस संगठन को अस्तित्व में लाया। हिमानी कहती है कि सावरकर ने 1952 में यह कहते हुए संगठन भंग कर दिया था कि अंग्रेजो के चले जाने के साथ ही संगठन का उद्देश्य पूरा हो गया, लेकिन हिंदुओ पर अत्याचार को देखते हुए हमने इसे पुन: शुरू किया।
हिमानी सावरकर का कहना है कि हिंदुओ के प्रति अन्याय के खिलाफ हम लड़ेगे। हम किसी तरह के आतंकवाद को समर्थन नही देते, लेकिन लगे हाथ यह भी स्पष्ट कर देना चाहते है कि हिंदू अपने ऊपर हो रहे अत्याचार बर्दाश्त नही करेगे। अगर ऐसी हिंदू विरोधी घटनाएं होती रही तो इसकी प्रतिक्रिया भी जरूर दिखेगी।
Wednesday, October 29, 2008
चलों चलें गृहयुद्ध की ओर
* अब बोलों हिजड़े पाटिल-हत्या के बदले हत्या।
* इतिहास गवाह है जब-जब बिहारियों पर अत्याचार हुआ है, हथियार उठाने के लिए मजबूर हुए है।
* उठों..ठाकरे और पाटिल जैसे मराठियों से इस देश को मुक्त करो। मिटा दो ऐसे अतितायियों का नामोनिशान।
* सभी उत्तर भारतीय समुदाय मराठी और महाराष्ट्र का बहिष्कार करो।
* महाराष्ट्र के सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारी वापस आएं।
* * * * * * * * * * * * *
भाइयों, ये अंश है आज के उन ब्लागरों के जो मुंबई व आसपास के हिस्सों में उत्तर भारतीयों पर बरपाये जा रहे कहर से व्यथित है। इनका गुस्सा लाजमी भी है। परन्तु क्या हम अब एक नए गृह युद्ध की तरफ नहीं बढ़ रहे है? क्या केंद्र की निकम्मी सरकार वाकई देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकना चाहती है। अगर कांग्रेस इसी तरह गंदी राजनीति की चालें चलती रहींतो देश और समाज को तहस नहस होने से कोई नहीं बचा सकता। हमारे ब्लागर भाईयों ने जो विचार व्यक्त किए, क्या वो उचित है, अगर नहीं तो आखिर इसका समाधान क्या है?
Monday, October 27, 2008
..गोलियों का जवाब गोलियों से
Friday, October 24, 2008
शर्म आती है हमें ऐसे मंत्री शिवराज पाटिल पर
Wednesday, October 22, 2008
महाराष्ट्र में एक आतंकवादी की जीत
Tuesday, October 21, 2008
नई दुनिया..एक शर्मनाक पत्रकारिता
Saturday, October 18, 2008
जिंदगी फिर दोराहे पर लाकर खड़ा कर चुकी है
.....ट्रेन का लंबा सफर और मैं बिल्कुल अकेली बैठी खिड़कियों से बाहर टकटकी लगाए उन तेजी से पीछे भागते पेड़ों को निहारे जा रही थी। शायद मैं उन्हें देखकर भी नहीं देख पा रही थी, क्योंकि मैं वहां मौजूद जरूर थी पर वहां थी नहीं। जैसे मानो सब कुछ तो वहीं ठहरा है बस बदली है तो चंद समय की घडि़यां, जब मैं चली तो तीन साल पहले का समय था और आज तीन साल गुजर चुके फिर भी सब कुछ ज्यों का त्यों ही है। अचानक उसे वो गुजरे अनगिनत लम्हें याद आने लगे जिसमें खुशी से ज्यादा थी गमों की रेखाएं। जून 2005 मेरी बीकाम का रिजल्ट आ चुका था और घर में सभी लोग काफी खुश थे। मैं अच्छे अंको से परीक्षा जो उत्तीर्ण की थी। मम्मी पापा और अपने पूरे परिवार की लाडली मैं दिनभर घर में इधर से उधर उछलती कूदती रहती, कभी भैया से नोकझोंक, तो कभी भाभी से इठलाती और कभी अपने प्यारे-प्यारे भतीजे को खिलाती। घर में इतनी लाडली थी कि कोई कभी कुछ कहता ही नहीं था। पापा ने भी एकबार भी नहीं पूछा कि बेटा तुम एमकाम क्यूं नहीं करना चाहती? शायद यह उनके स्वभाव में ही शामिल नहीं था बच्चे जो करना चाहे करें बस उन्हें पैसे देने से मतलब होता था। एमकाम के फार्म की अंतिम तारिख भी गुजर गई और पापा ने एक बार फिर भी नहीं पूछा। पर मैं जानती थी कि पापा के मन में कुछ और है।उसके सपनों की उड़ान अभी बाकि थी। और कुछ ही समय घर में अभी बीते होंगे कि रिश्तेदार और पड़ोसियों की आंखों में जैसे मैं किरकिरी की तरह चुभने लगी। कब कर रहें हैं शादी, कोई लड़का देखा कि नहीं। आखिर आपको कैसे लड़के की तलाश है। कब करेंगे शादी, न जाने कितने सवाल, पर मेरी मम्मी और पापा का एक जवाब-- हमें अपनी बेटी को किसी की दासी बनाकर नहीं बिदा करना हम जब तक उसे अपने पैरों पर न खड़ा कर ले नहीं बिदा करना। सौ सवाल के एक जवाब ने कर दिया सभी को खामोश। आखिर हो भी क्यों न, मेरी दो बहनों के साथ जैसा हुआ सभी वाकिफ थे। बड़ी दीदी एक घरेलू महिला थीं जिन्हें उनके ससुराल वालों ने कितने दुख दिए, शायद वो दर्द इतने थे कि कोई भी लड़की शादी के नाम पर नफरत करने लगती और कुछ ऐसा ही हुआ शामिली के साथ भी और मैं भी शादी जैसे पवित्र बंधन से नफरत करने लगी मुझे लगता था कि जहां प्रेम न हो ऐसी शादी का क्या अर्थ और क्या मायने जिसके लिए अपना घर परिवार सबकुछ छोड़कर एक लड़की जाती है वो ही उसे वो मान सम्मान, प्रेम और अधिकार की बजाय उसपर कहर बरसाए तो आखिर वो कहां जाए। मां बाप की भी मजबूरी, कि लड़की पराया धन है उसे जब शादी के पहले नहीं रख सकते तो फिर शादी के बाद रखना तो जैसे समाज के नियम कानूनों को तोड़ना जितना अक्षम्य अपराध ही होगा। फिर भी दी ने किसी तरह नौ महीने अपनी मासूम सी बेटी के साथ गुजारे। हर पल तिल-तिल जलती और मरती रही वो और समाज था कि ताने पर ताने कसता रहा। वो इंसान कैसा था जो अपनी मासूम सी फूल सी बेटी को एक झलक देखने के बाद दोबारा कभी नहीं आया। कितना भी कोई बेरहम हो पर इतना नहीं हो सकता, जिस फूल को देखकर पत्थर भी पिघल जाता पर ये दहेज का भूखा इंसान नहीं पिघल रहा था। पर शायद उसमें इंसानियत ही नहीं थी.....दिल पर गहरी चोट दे गया था वो हादसा जो कभी न भरे शायद ऐसे जख्म थे।....और फिर मेरी दिल में भी आत्मनिर्भर बनने की महत्वाकांक्षा हिलोरे मार रही थी। उस पर से मम्मी पापा का पूरा-पूरा सहयोग मिला। पापा मैं अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हूं मैं अपने जीवन में किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती। शादी तो जिंदगी का अंत है पर मैं जिंदगी की शुरूआत करना चाहती हूं, मैं ऐसे क्षेत्र में जाना चाहती हूं जहां मैं kisi के दर्द को बांट सकूं, लोगों तक उसकी दर्द भरी आह को पहुंचा सकूं। शायद जिंदगी में अब तक जो देखा वो काफी है, फिर कभी किसी के साथ कोई अन्याय न हो। कुछ ऐसे ही सपने थे शामिली के जो उसे जिंदगी में कुछ करने को हर पल मजबूर करते थे। लेकिन इसके लिए अपनों से दूर जाना होगा। मुश्किल था शामिली के लिए, अपने परिवार से दूर रहना, वह एक दिन भी मम्मी के बिना नहीं रह पाती थी। रिश्तेदारों ने तो टकटकी लगाई थी कि कैसे रहेगी शामिली, घर से दूर। आखिर उसके सपनों के आगे परिवार का प्रेम छोटा पड़ गया और निकल पड़ी मैं घर से कुछ करने की लालसा में.... आसान न थी डगर पर फिर भी था चलने का हौसला और जिंदगी में कुछ करने की ख्वाइश। हर पल जिंदगी कुछ नए ताने बाने बुनती और कहती कि कुछ कर गुजरना है। इस बीच भी लोगों के खोखले सवाल पीछा ही करते थे। कभी दबी जुबान में बाहर भी आ जाते लेकिन अभी उसे पता था कि उसका लक्ष्य उसके सामने है उसे कुछ ऐसा करना है जो दुनिया की भीड़ से उसे अलग कर दे। देखते देखते एक और साल गुजरा और दिल्ली में उसकी पढ़ाई भी खत्म हो गई। फिर उठे वही सवाल अब नहीं करवानी नौकरी कर दो इसकी शादी, नहीं तो भेज दो वापस घर। अब तो अति हो गई जब मेरे घर वालों को मेरी नौकरी से परहेज नहीं तो गैरो को क्यूं हो भला। आंशू के साथ जिंदगी ने फिर चुना एक पथरीला रास्ता छोड़ दिया सब कुछ और निकल पड़ी अपनों से बहुत दूर किसी दूसरे प्रांत में जहां कोई उससे ऐसे बेतुके सवाल न करें और न मांगे उससे भविष्य का हिसाब। अब मैं पहले से बहुत खुश और सकून भरी जिंदगी जी रही थी क्योंकि अब मेरी जिंदगी का वो सपना साकार हो चुका था और मम्मी पापा की भी तपस्या रंग लाई थी। धीरे-धीरे एक साल गुजर गया पता ही नहीं चला जैसे पर अब इस समाज में भी जहां मैं रह रही थी लोगों को वही सारी समस्याएं दिखने लगी। समाज की अपेछाएं वक्त के साथ बढ़ने लगी, लेकिन मेरी दिलों के जख्म को देखने और समझने वाला कोई नहीं था। क्यूं होती है उसे इस समाज के नुमाइंदों से नफरत शायद अब तक तो मैं भी उन्हें भुला ही चुकी थी। पर वक्त और लोगों के व्यवहारों ने फिर मुझे कुरेदना शुरू कर दिया था। एक बार फिर मुझे याद दिला दी कि कैसे जिए। आखिर कैसे बीते थे ये दो साल? अक्सर याद आती थी उस बचपन की जहां कुछ कहने से पहले ही सबकुछ मिल जाता। घर का लाड प्यार सबकुछ पर फिर सपने सब भुला देते हैं। कहीं रहने के लिए वहां दिल का लगना बहुत जरूरी है, और शायद वहां बने मित्रों के साथ दिल भी लग गया था। अचानक फिर ली जिंदगी ने एक नई करवट और एक ही दिन में उस ट्रेन के सफर की तरह मेरी जिंदगी ने रास्ता बदल दिया और छूट गए वो सारे पुराने साथी जिसकी मंजिल जहां आई वो वहीं उतर गया। शामिली का मन अब उदास सा रहना लगा, फिर नए लोग और नई दुनिया लेकिन समझने वाला कोई नहीं। धीरे-धीरे मेरी दुनिया का सामना करने की ताकत भी खत्म होने लगी। कैसे कहे कि आज मुझे वो गुजरे जमाने याद आने लगे, जिन सपनों के लिए मैं ne सबकुछ छोड़ा था वो भी अब मुझे पराए से लगने लगे। डूब सी गई वो अपनी पुरानी यादों में, साहस था कि मधम पड़ने लगा। मैं शादी नहीं करना चाहती थी पर समाज और रिश्तेदारों की जोर जर्बदस्ती मुझे कमजोर कर रही थी। जिंदगी फिर एक ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर चुकी है......मेरी
Thursday, October 9, 2008
..तो बिन सात फेरे ही होंगे हम तेरे
Monday, September 29, 2008
..तो अपराध है समलैंगिक यौन संबंध
Friday, September 26, 2008
आतंकियों का एक और प्रवक्ता अर्जुन सिंह
Tuesday, September 23, 2008
..तो दस बार सोचेंगे विदेशी निवेशक
बहरहाल, ये घटनाएं देश की उद्योग नीति की कमजोरियों को दर्शाती है तथा ऐसी घटनाएं विदेशी निवेशकों के समक्ष भारत की छवि को धूमिल ही करेंगी। खास कर देश के श्रम मंत्री ऑस्कर फर्र्नाडिस का वह बयान को विदेशी निवेशकों को दस बार सोचने पर मजबूर कर देगा, जिसमें उन्होंने सीईओ की हत्या के बाद कहा था कि यह हत्या कंपनियों के प्रबंधकों को एक चेतावनी है। मतलब साफ है-कंपनिया निकम्मे कर्मचारियों को भी पाल कर रखे। उन्हें निकालेंगे को यही होगा। वाह रे हमारे देश के श्रम मंत्री।
Monday, September 22, 2008
शर्मसार हुआ भारतीय उद्योग जगत
Saturday, September 20, 2008
क्या प्यार करना बड़ा गुनाह है...
Tuesday, September 16, 2008
यह गृहमंत्री नपुंसक है
Monday, September 15, 2008
किसके बाप की है मुंबई!
Tuesday, September 9, 2008
10 सितंबर, काला बुधवार: बेकार आशंका
लार्ज हेड्रोन कोलिडर [एलएचसी] जी हां, यही नाम है उस मशीन का, जिसके बारे में रोजाना टीवी चैनल वाले लोगों को डरा रहे है। यह जिनेवा स्थित परमाणु शोध प्रयोगशाला सर्न में रखी गई है, और आज 10 सितंबर, यानी बुधवार को यहां दुनियाभर के लगभग 2500 वैज्ञानिक जुटेंगे और धरती के 330 फुट नीचे इस मशीन के जरिए भौतिकी का सबसे बड़ा प्रयोग करेंगे।चौदह साल के लंबे इंतजार के बाद पृथ्वी की अनेक गुत्थियां सुलझने को हैं और वैज्ञानिकों की मानें तो वह अब तक के सबसे विशाल परीक्षण के जरिए ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य का पता लगाने की कोशिश करेंगे। टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में टीवी चैनल वाले बेतुकी और बेकार आशंकाओं को बता कर लोगों को गुमराह कर रहे है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक महाविस्फोट से हुई थी और वैज्ञानिक 27 किलोमीटर लंबी इस मशीन से विस्फोट कर एक बार फिर वैसी ही परिस्थितियां पैदा करेंगे, ताकि दुनिया के निर्माण के रहस्य का पता लगाया जा सके। प्रयोग करने वाले वैज्ञानिक किसी भी ऐसी आशंकाओं को निराधार बता रहे हैं, जो अफवाहें उड़ाई जा रहीं है। प्रयोग से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी का कहना है कि एलएचसी से धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा कोई खतरा होता तो वैज्ञानिक यह प्रयोग करने का जोखिम नहीं उठाते।उन्होंने कहा कि ब्रह्मांड की उम्र लगभग 14 अरब वर्ष और धरती की उत्पत्ति की उम्र करीब साढ़े चार अरब वर्ष मानी जाती है। तब से लेकर अब तक ब्रह्मांड में न जाने कितनी टक्कर हुई हैं। लेकिन धरती के अस्तित्व पर कभी कोई संकट नहीं आया।एलएचसी से परखनली में छोटे कणों में ऊर्जा पैदा की जाएगी। इससे प्रोटोन एक दूसरे से टकराएंगे। इस दौरान ऊर्जा का स्तर सात गुना ज्यादा होगा। यह अब तक का सबसे ज्यादा हासिल किया जाने वाला स्तर होगा। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस परीक्षण के जरिए भौतिक विज्ञान के कुछ बड़े सवालों के जवाब ढूं़ढे़ जा सकेंगे, जैसे- ब्रह्मांड जैसा दिखाई देता है, वैसा क्यों है और द्रव्य गुरुत्वाकर्षण तथा रहस्यमयी डार्क मैटर को कैसे स्पष्ट किया जा सकता है आदि। इस परीक्षण के पीछे डाक्टर लिन इवांस हैं, जो एक खनिक के पुत्र हैं। उनका कहना है कि विज्ञान के प्रति वे तब आकर्षित हुए जब वह कम उम्र के ही थे। एक अन्य वैज्ञानिक मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन कोक्स हैं।
Wednesday, August 27, 2008
राउरकेला का हनुमान वाटिका
पिछले दिनों एक पारिवारिक कार्यक्रम के सिलसिले में मेरा उड़ीसा के एक औद्योगिक शहर राउरकेला में जाना हुआ। नई दिल्ली से दो दिनों की थकान भरी यात्रा से होता हुआ जब मैं इस औद्योगिक नगरी राउरकेला में प्रवेश किया तो शाम हो चुकी थी। शहर में प्रवेश करते ही मुझे भगवान हनुमान की एक बहुत बड़ी प्रतिमा नजर आई। प्रतिमा इतनी विशाल थी कि मेरी नजर ही नहीं हट रही थी। जानने की उत्सुकता हुई, तो पता चला इसकी ऊंचाई 74 फुट 9 इंच है, और यह प्रतिमा एशिया में सबसे ऊंची है।अगले दिन मैं अपने मित्रों के साथ इस मंदिर के दर्शन और इसके बारे में जानने के लिए चल पड़ा। इस मंदिर जिसका नाम हनुमान वाटिका है, राउरकेला शहर का एक महत्वपूर्ण स्थल है। शनिवार और रविवार के अलावा विशेष दिनों में यहां भगवान हनुमान की पूजा के लिए सीमावर्ती झारखंड, बिहार और सुदूर छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु आते हैं।यह हनुमान वाटिका 12 एकड़ के क्षेत्र में फैली है। इसमें भगवान शिव, जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, वैष्णो देवी, सोमनाथ, मां मंगला, मां विमला और भगवान श्रीराम के छोटे मंदिर भी हैं।अभी हाल फिलहाल इस परिसर में सांई राम का भी एक मंदिर बनाया गया है। इस बेमिसाल प्रतिमा के शिल्पकार आंधप्रदेश के जाने माने कलाकार टोगु लक्ष्मण स्वामी हैं जिन्हें इसे बनाने में दो वर्ष लगे।बताते है कि जब तत्कालीन मुख्यमंत्री बिजू पटनायक ने 23 फरवरी 1994 को इस प्रतिमा का अनावरण किया था तो प्रतिमा पर माला पहनाने के लिए उन्हें क्रेन के जरिए ऊपर ले जाया गया था। कुल मिला कर इस शहर के लिए यह मंदिर एक एतिहासिक धरोहर है, जिसे संभालना बहुत जरूरी है।
Sunday, August 17, 2008
शिखंडी सरकार के मुंह पर तमाचा?
शुक्रवार को जहां सारा देश स्वतंत्रता दिवस की 62वीं सालगिरह मना रहा था, वहीं कश्मीर घाटी में केंद्र सरकार के मुंह पर कालिख पोतते हुए अलगाववादियों ने पाकिस्तानी झंडे फहराए। केंद्र की मनमोहन सरकार ने इस मामले पर जिस तरह से शिखंडी रवैये का परिचय दिया है, इससे करोड़ों हिंदुस्तानियों का सिर शर्म से झुक गया है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जिस ऐतिहासिक लाल चौक पर 60 साल पहले बड़ी शान से तिरंगा फहराया था, शुक्रवार को वहीं पर अलगाववादियों ने भारत सरकार को तमाचा मारते हुए पाक ध्वज फहराए। यह सब कुछ उस समय हुआ जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मना रहा था।घाटी के हर मस्जिद से शुक्रवार को भारत विरोधी नारे लगाए जाते रहे और दिल्ली के लाल किला से हमारे पीएम मिमियाते रहे। शुक्रवार को घाटी में जो कुछ भी हुआ इसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि कश्मीर भारत का हिस्सा है। पुलिस और अर्द्धसैनिक बल शांत होकर राष्ट्रविरोधी तत्वों का तमाशा देख रहे थे।जुमे की नमाज के बाद तो अलगाववादियों ने जुलूस निकाल कर जम कर हिंदुस्तान को कोसा। इन नमकहरामों ने 'हम क्या चाहते-आजादी, यहां क्या चलेगा-निजाम-ए-मुस्तफा, भारत के आईवानो को-आग लगा दो, पाकिस्तान से नाता क्या-लाइल्लाह लिलल्लाह, जीवे-जीवे पाकिस्तान' के नारे भी लगाए गए। लेकिन इन्हें रोकने वाला कोई नहीं था। विडंबना यह है कि देश के अन्य राज्यों में अगर ऐसी कोई घटना सामने आती है तो उसे गिरफ्तार कर उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर हो जाता है। सवाल यह उठता है कि यहां सरकार की यह दोगली नीति कब तक चलेगी। कश्मीर घाटी में हाल ही में अलगाववादी नेताओं ने नियंत्रण रेखा पार करने की कोशिश की लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला क्यों नहीं दर्ज हुआ। आखिर यह देश कब तक राजनेताओं के दोगलेपन का खामियाजा भुगतता रहेगा? आखिर कब तक?
Saturday, July 26, 2008
सेक्स बनाम संचार क्रांति भाग-1
Friday, March 7, 2008
बिहारी होने की इतनी बड़ी सजा
Thursday, February 21, 2008
भाई मैं मुंबई क्यों छोड़ूं ?
Saturday, February 9, 2008
राज का गुंडाराज,किसकी मुम्बई!
बिहारियों द्वारा छठ पर्व मनाए जाने को नाटक करार देने और बिग बी अमिताभ बच्चन के उत्तरप्रदेश प्रेम पर ताने कसने के राज के कृत्य की जितनी भी निंदा की जाए कम है। क्षेत्रीय संकीर्णता के इस विषधर को समय रहते कुचल डालने में ही देश का भला है अन्यथा इसका जहर फैलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
राज ठाकरे के ऐसा करने का मकसद मराठी भाषी वोट बैंक को अपनी पार्टी के साथ जोड़ना है, पर मराठी समाज उनके इस संकीर्ण नजरिये के समर्थन में उठ खड़ा हो इसकी संभावना नही है। राज के चाचा बालासाहेब दशकों से संकीर्ण महाराष्ट्रवाद की राजनीति करते रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता में उनकी पार्टी तभी भागीदार बन पाई जब उसने भाजपा सरीखी राष्ट्रीय पार्टी से हाथ मिलाया। वही शिवसेना को भी अपना रुख बदलना पड़ा..बालासाहेब की शिवसेना से अलग होकर राज ने अपनी जो नई राजनीतिक दुकान खोली है वह तमाम जतन करके भी न तो कोई साख बना पाई है और न जनाधार ही। शायद इसी से हताश हो कर राज ने उत्तर भारतीयों पर हमला बोला है जो भोथरा होने के साथ ही समाज को बांटने वाला भी है।
सुरक्षा संबंधी कारणों को छोड़ दें तो देश के नागरिक देश के किसी भी हिस्से में आने-जाने, रोजी-रोटी कमाने और अपनी रीतियों-परंपराओं का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह उनके संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हिस्सा है। मुंबई में बिहारियों द्वारा छठ पूजा करने को नाटक बताकर राज ने वहां रहने वाले बिहारियों के मूल अधिकारों को चुनौती दी है।
अमिताभ बच्चन के उत्तरप्रदेश प्रेम पर उनकी तानाकशी भी इसी दायरे में आती है। बिहारियों को मुंबई में छठ पूजा करने का उतना ही हक है जितना कि महाराष्ट्रियनों को देशभर में गणोशोत्सव मनाने का।
Tuesday, January 22, 2008
छः साल खौफ के साए में......
एक औरत, एक गरीब औरत और एक मुसलमान औरत होकर पिछड़े सामंती समाज के फिकरों, बलात्कार के अपमान को बर्दाश्त करना, लेकिन फिर भी गर्व के साथ मस्तक ऊँचा किए अपनी लड़ाई से हार न मानना, शायद यही कारण थे कि बिलकिस को अंतत: न्याय मिला। एक ऐसे देश में, जहाँ परिवारजन खुद बलात्कार का शिकार हुई अपनी बेटी को मौत के घाट उतार देते हैं, वहाँ बिलकिस के मानसिक संत्रास और उसके दु:खों की कल्पना की जा सकती है। एक ऐसा देश, ऐसा समाज, जहाँ ‘बैंडिट क्वीन’ जैसी बेहद दर्दनाक फिल्म के सबसे तकलीफदेह हिस्सों पर हॉल में बैठे लोग सीटी बजाते हैं, कनखियों से मुस्कुराते हैं। मेरे जेहन में आज भी उस फिल्म की स्मृति किसी गहरी पीड़ा के रूप में दर्ज है। इस दर्द को बिलकिस कुछ इन शब्दों में बयाँ करती है, ‘पिछले छः साल मैंने खौफ के साए में बिताए हैं। एक पनाहगाह से दूसरी पनाहगाह तक भागती फिरी हूँ, अपने बच्चों को अपने साथ लिए-लिए, उस नफरत से बचाने के लिए जो अभी भी मुझे पता है, कई लोगों के दिलोदिमाग में पैबस्त है। इस फैसले का मतलब नफरत का खात्मा नहीं है, लेकिन इससे यह भरोसा जागता है कि कहीं किसी तरह इन्साफ की जीत हो सकती है। यह फैसला सिर्फ़ मेरी नहीं उन सभी बेगुनाह मुसलमानों की जीत है, जिनका कत्ल कर दिया गया और उन सभी औरतों की भी, जिनकी देह इसलिए रौंद डाली गई कि मेरी तरह वे भी मुसलमान थीं।’ और यह सब उस धरती पर हुआ, जो गाँधी की विरासत से सींची गई है। और उस राम और उस धर्म के नाम पर हो रहा है, जिसके धर्मग्रंथ स्त्री के महिमामंडन और गौरव-गान से भरे हुए हैं। बिलकिस भंवरी देवी और मुख्तारन माई की याद दिलाती है, और इतिहास की उन तमाम स्त्रियों की, जिनमें सच बोलने और सच के लिए लड़ने का साहस है। जिनके फौलादी मन को पिघला सके, इतनी कूवत बड़े-से-बड़े जुल्म में भी नहीं है।
Thursday, January 3, 2008
उफ़! मायानगरी में ऐसी इंसानी दरिंदगी
...कोई मेरे पीठ को छू रहा था तो कोई शरीर में चिकोटी काट रहा था। मेरे कपड़े खिंचने के लिए दर्जनों हाथ हमारे करीब आते गए। भीड़ ने मेरी चचेरी ननद पर भी झपटना शुरू कर दिया। हम चिल्ला रहे थे, मेरे पति ने मुझे बचाने का प्रयास किया। उस समय भीड़ केवल चुपचाप खड़ी थी। मुझे लगता है कि मुंबई वासी मुसीबत में पड़े किसी व्यक्ति की मदद करने के इच्छुक नहीं होते। यह दर्दनाक बयान उस महिला के हैं, जो नववर्ष पर मायानगरी में इंसानी दरिंदगी की शिकार हुई। उन दो महिलाओं में से एक ने उस खतरनाक मंजर को बयान किया। किस कदर हुड़दंगियों की भीड़ ने उसे जानवरों की तरह नोचा और शर्मनाक हरकतें की। इस महिला के पति ने उस रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना का ब्यौरा दिया, जब करीब 50 लोग उसकी पत्नी और चचेरी बहन को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे। एक अखबार को को दिए साक्षात्कार में महिला ने बताया कि मैं इस डरावनी घटना से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हूं।
समाज का ये वो रूप है, जहाँ उपभोक्तावाद इंसान की भावनाओं से ऊपर निकल चुका है. कुछ इंसान उपभोक्तावाद की इस अंधी दौड़ में इतना तेज़ दौड़ रहे हैं कि उनको पता ही नही है कि क्या सही है और क्या ग़लत है. मुंबई जैसे महानगर,जिसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है और जहाँ पर आज लड़कियाँ भी लड़कों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर काम कर रही हैं, ऐसे में मुंबई में हुई ये घटना बताती है कि लड़कियों के लिए कुछ मुट्ठी भर लोगो कीं सोच आज भी क्या है. जो लोग ऐसी हरकतें करते हैं वो ये भूल जाते हैं कि उनके घर में भी माँ, बेटी और बहन हैं.